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________________ लोगोवयारविणए सत्तविहे पण्णत्ते । तं जहा - १. अब्भासवत्तियं, २. परच्छंदाणुवत्तियं, ३. कज्जहेउं, ४. कयपडिकिरिया, ५. अत्तगवेसणया, ६. देसकालण्णुया, ७. सव्वट्टेसु अप्पडिलोमया । सेतं लोगोवयारविणए, से तं विणए । ३०. (ञ) विनय तप क्या है ? (जो आत्मा पर लगे कर्मों को दूर - विनयन करता है, वह विनय गुरु आदि का सत्कार, वन्दना, शुश्रूषा भक्ति के रूप में अनेकविध है ।) विनय सात प्रकार का कहा है(१) ज्ञानविनय, (२) दर्शनविनय, (३) चारित्रविनय, (४) मनोविनय, (५) वचनविनय, (६) कायविनय, (७) लोकोपचारविनय । (i) ज्ञानविनय क्या है ? (जिसमें ज्ञान का सत्कार व बहुमान किया जाता है) वह ज्ञानविनय पाँच प्रकार का है(क) आभिनिबोधिकज्ञान ( मतिज्ञान) विनय, (ख) श्रुतज्ञानविनय, (ग) अवधिज्ञानविनय, (घ) मनः पर्यवज्ञानविनय, (ङ) केवलज्ञानविनय । इन ज्ञानों की यथार्थता स्वीकार करते हुए इनके लिए विनीत भाव से यथाशक्ति पुरुषार्थ या प्रयत्न करना । (ii) दर्शनविनय क्या है ? दर्शनविनय दो प्रकार का है - (क) शुश्रूषाविनय, (ख) अनत्याशातनाविनय । (क) शुश्रूषा विनय क्या है ? (गुरु आदि के समीप रहकर विधिपूर्वक सेवा करना) शुश्रूषाविनय के अनेक प्रकार हैं, जो इस प्रकार हैं- ( १ ) अभ्युत्थान- गुरुजनों या गुणीजनों के आने पर उन्हें आदर देने हेतु खड़े होना, (२) आसनाभिग्रह - गुरुजन जहाँ बैठना चाहें वहाँ आसन लेकर उपस्थित रहना, (३) आसन- प्रदान- गुरुजनों को आने पर बैठने के लिए आसन देना, (४) गुरुजनों का सत्कार करना, (५) सम्मान करना, (६) (कृतिकर्म) यथाविधि वन्दन - प्रणमन करना, (७) कोई बात स्वीकार या अस्वीकार करते समय हाथ जोड़ना, (८) आते हुए गुरुजनों के सामने जाकर सम्मान करना, (९) बैठे हुए गुरुजनों के समीप बैठना, उनकी सेवा करना, (१०) जाते हुए गुरुजनों को पहुँचाने जाना। यह शुश्रूषाविनय है। (ख) अनत्याशातनाविनय क्या है ? ( आत्म - गुणों का नाश करने वाले अवहेलनापूर्ण कार्य नहीं करना) अनत्याशातन अनत्यनाविनय के पैंतालीस भेद हैं । वे इस प्रकार हैं- (१) अर्हतों की आशातना (अवहेलना औपपातिकसूत्र Jain Education International (100) For Private & Personal Use Only Aupapatik Sutra www.jainelibrary.org
SR No.002910
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2003
Total Pages440
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_aupapatik
File Size16 MB
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