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टुकड़े-टुकड़े कर निचोड़ दिये जाते हैं। कइयों को चमड़ी सहित विकृत कर दिया जाता है, कान, ओठ, नाक और हाथ-पैर समूल काट लिए जाते हैं, तलवार, करवत, तीखे भाले एवं फरसे से फाड़ दिये जाते हैं, वसूला से काठ की तरह छीला जाता है, उनके शरीर पर उबलता खारा जल सींचा जाता है, जिससे शरीर जल जाता है, फिर भालों की नोंक से उसको छिन्न-भिन्न किया जाता है, इस प्रकार उनके समग्र शरीर को जर्जरित कर दिया जाता है। उनका शरीर सूज जाता है और वे पृथ्वी पर लोटने लगते हैं।
31. By nature the hellish beings are minical towards each other. So they cause pain to each other with hundreds of weapons created with bad fluid power.
[Q.] What are these various types of weapons ? ।
[Ans.] Those weapons are dumble (mudgar), musundhi, karawat, shakti, plough, gada, moosal, wheel, spear, tomar (a kind of arrow), shool, stick, bhindimal, sadhal (a special type of spear), pattis, chammeth (a stony weapon mounted with leather), duhan (a weapon that can fell trees), mutthiya (a weapon of fist size), asikhedak (a sword with a blade), sword (khadag), bow, arrow, kanak (a type of arrow), kappini (scissor), vaasi (a weapon used to peel the wood), parasu. All these weapons were shining bright. The hellish beings attack and tear the body of each other with these weapons and with other weapons of similar type.
The body of the hellish beings is reduced to particles by striking with mudgar. It is reduced to pieces with musundhi. It is trampled. It is crushed in the oil crusher. Some of them are deformed. Their ears, lips, nose, hand and feet are chopped off totally. Their body is sprinkled with boiling salty water, which burns their body. Later with the sharp pointed edge of the spear they are torn. Thus the entire body is in tatters. Their body becomes swollen and they start moving on the earth in a bemoaning state. _ विवेचन : जैसा पहले बताया है-नरकभूमियों में मुख्यतः तीन प्रकार से घोर वेदना होती है-(१) क्षेत्रजनित वेदना, (२) नरकपालों द्वारा पहुँचाई जाने वाली वेदना, और (३) परस्पर नारकों द्वारा उत्पन्न की हुई वेदना। क्षेत्रजनित वेदना नरकभूमियों के निमित्त से होती है, जैसे अतिशय उष्णता और अतिशय शीतलता आदि। इस प्रकार की वेदना का उल्लेख सूत्र २३-२४ में किया जा चुका है। नरकभूमियों में ऊपर की भूमियों में उष्णता का भयानकतम दुःख है तो नीचे की भूमियों में शीत का वचनातीत प्रकोप है। उष्णता वाली नरकभूमियों को धधकते लाल-लाल अंगारों की उपमा या अतिशय प्रदीप्त-जाज्वल्यमान पृथ्वी की उपमा दी गई है। यह उपमा मात्र समझाने के लिए है। वहाँ की उष्णता तो इनसे अनेकानेक गुणी है। वहाँ की गर्मी इतनी तीव्रतम होती है कि मेरु के बराबर का लोहपिण्ड भी उसमें गल सकता है।
श्रु.१, प्रथम अध्ययन : हिंसा आश्रव
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Sh.I, First Chapter : Violence Aasrava
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