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卐 15. Mahaghosh-They imprison in the penn hellish beings who run $i hither and thither in a frightened state in order to save themselves from
the tortoises. Thereafter the demons produce dreadful roaring sound and stop them from coming out from that prison. नारकों का वीभत्स शरीर DREADFUL BODY OF HELLISH BEINGS
२४. तत्थ य अंतोमुहुत्तलद्धिभवपच्चएणं णिवत्तंति उ ते सरीरं हुंडं बीभच्छदरिसणिज्जं बीहणगं + अट्ठि-ण्हारु-णह-रोम-वज्जियं असुभगं दुक्खविसहं। ॐ तओ य पज्जत्तिमुवगया इंदिएहिं पंचहिं वेएंति असुहाए वेयणाए उज्जल-बल-विउल-कक्खड
खर-फरुस-पयंड-घोर-बीहणगदारुणाए। 卐 २४. उस अत्यन्त डरावनी नरकभूमि में वे घोर पाप करने वाले पापी जीव उत्पन्न होते ही - अन्तर्मुहूर्त (४८ मिनट से कम काल) में नरकभव की स्वाभाविक प्रकृति के कारण वैक्रियलब्धि से ॐ अपने शरीर का निर्माण कर लेते हैं। वह शरीर बेडौल, भद्दी आकृति वाला, देखने में बीभत्स, दुर्गन्धमय 卐 घणित, भयानक, अस्थियों, नसों, नाखुनों और रोमों से रहित; अशुभ और घोरातिघोर दुःखों को सहन
करने में सक्षम हुंडक संस्थान वाला होता है। म शरीर का निर्माण हो जाने के पश्चात् वे सभी पर्याप्तियों से पूर्णपर्याप्त हो जाते हैं और पाँचों इन्द्रियों
से अशुभ वेदना का वेदन करते हैं। उनकी वेदना उज्ज्वल, बलवती, विपुल, उत्कट, प्रखर, परुष, * प्रचण्ड, घोर, बीहनक-डरावनी और दारुण होती है।
24. In that extremely dreadful hell, the hellish beings who had committed drastic sinful activities in their previous lives develop their body fully in just 48 minutes with the natural fluid power they have in the hell. That body is grotesque, ugly and frightening to look at and does not contain bones, nerves, nails or pores. It is bad and capable of bearing most dreadful pain and troubles. It has hundak constitution.
After developing their body, the hellish beings experience bad feelings through all the five senses. Their pain is distinct, forceful, extended, 5 dreadful, sharp, frightening, deep and heart rending.
विवेचन : वेदना प्रायः दो प्रकार की होती है-सुखरूप सातावेदना और दुःखरूप असातावेदना। नारक जीवों * की वेदना असातावेदना ही होती है। उस असातावेदना की उत्कटता बताने के लिए यों तो शब्द कम ही पड़ते हैं, ॐ परन्तु फिर भी उसकी दारुणता का सामान्य बोध कराने के लिए आगम में अनेक शब्द आये हैं: जिनका भावार्थ इस प्रकार है
उज्जल (उज्ज्वल)-जिसमें सुख का तनिक भी सम्मिश्रण नहीं। बल-विउल (बल-विपुल)-अतिशय बलवती एवं समग्र शरीर में व्याप्त रहने के कारण विपुल। उक्कड (उत्कट)-चरम सीमा को प्राप्त।
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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
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Shri Prashna Vyakaran Sutra
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