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________________ 55555555555555555555555555$$$$$$$$$ ) ) ) ) ) )) ) ) ) ) ) ) ) ) ) ) )) मणिवाए दुट्ठणिसज्जदुण्णिसीहिय-दुभि-कक्खड-गुरु-सीय-उसिणलुक्खेसु बहुविहेसु अण्णेसु य एवमाइएसु फासेसु अमणुण्णपावगेसु ण तेसु समणेण रूसियव्यं, ण हीलियब्वं, ण णिदियव्वं, ण गरहियवं, + ण खिंसियव्वं, ण छिंदियव्वं, ण भिंदियव्वं, ण वहेयव्वं, ण दुगंछावत्तियव्वं च लुभा उप्पाएगें। ____एवं फासिंदियभावणाभाविओ भवइ अंतरप्पा, मणुण्णामणुण्ण-सुब्भि-दुभिरागदोसपणिहियप्पा साहू मणवयणकायगुत्ते संवुडेणं पणिहिइंदिए चरिज धम्म। १६९. पांचवी भावना स्पर्शनेन्द्रिय संवर है- स्पर्शनेन्द्रिय द्वारा मनोज्ञ और सुखद स्पर्शों को छूकर (रागभाव नहीं धारण करना चाहिए)। __[प्र. ] वे (मनोज्ञ स्पर्श) कौन-से हैं ? [उ. ] जलमण्डप-जिसमें पानी के फव्वारे चल रहे हों, हार, श्वेत चन्दन, शीतल निर्मल जल, विविध प्रकार के पुष्पों की शय्या-फूलों की सेज, खसखस, मोती, कमल की डंडी, रात्रि में चन्द्रमा की 3 चाँदनी तथा मोर-पिच्छी, तालवृन्त-ताड़ के पंखों से की गई सुखद शीतल हवा में, ग्रीष्मकाल में सुखद 卐 स्पर्श वाले अनेक प्रकार के शय्याओं में, आसनों में, शीतकाल में ओढ़ने के गुण वाले अर्थात् ठण्ड से बचाने वाले वस्त्रादि में, अंगारों से शरीर को तपाने, सूर्य की किरणों की धूप, चिकने-तेलादि पदार्थ, 卐 कोमल और शीतल, गर्म और हल्के-जो ऋतु के अनुकूल सुखप्रद स्पर्श वाले हों, शरीर को सुख और 5 मन को आनन्द देने वाले हों, ऐसे सब स्पर्शों में तथा इसी प्रकार के अन्य मनोज्ञ और सुहावने स्पर्शों में है ॐ श्रमण को आसक्त नहीं होना चाहिए, अनुरक्त नहीं होना चाहिए, गृद्ध नहीं होना चाहिए-उन्हें प्राप्त करने में 卐 की अभिलाषा नहीं करनी चाहिए, मोह नहीं करना चाहिए, और स्व-परहित का विघात नहीं करना चाहिए, लोभ नहीं करना चाहिए, तल्लीनचित्त नहीं होना चाहिए, उनमें सन्तोषानुभूति नहीं करनी ॐ चाहिए, हँसना नहीं चाहिए, यहाँ तक कि उनका स्मरण और विचार भी नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त स्पर्शनेन्द्रिय से अमनोज्ञ एवं अशुभ स्पर्शों को छूकर (रुष्ट-द्वेष नहीं करना चाहिए)। [प्र. ] वे स्पर्श कौन कौनसे हैं ? [उ. ] विविध प्रकार के रस्सी आदि के बन्धन, लाठी आदि से वध ताड़न-थप्पड़ आदि से फ मारपीट, तपी हुई लोहे की सलाईयों आदि से शरीर को दागना, अधिक भार का लादा जाना, अंग-भंग होना या किया जाना, नखों में सुइयाँ चुभाया जाना, अंग की हीनता होना, लाख के रस, नमकीन फ (क्षार) तेल, उबलते शीशे या कृष्णवर्ण लोहे से शरीर का सींचा जाना, काष्ठ के खोड़े में डाला जाना, डोरी या बेड़ी से बाँधे जाना, हथकड़ियाँ पहनाई जाना, कुंभी में पकाना, अग्नि से जलाया जाना, शेफत्रोटन लिंगच्छेद, बाँधकर ऊपर से लटकाना, शूली पर चढ़ाया जाना, हाथी के पैर से कुचला जाना, हाथ-पैर-कान-नाक-होठ और सिर में छेद किया जाना, जीभ का बाहर खींचा जाना, + अण्डकोश-नेत्र-हृदय-दाँत या आँत का मोड़ा जाना, गाड़ी में जोता जाना, बेंत या चाबुक द्वारा प्रहार ) ) ) )) ) ) )) )) 3555555555))))))))) )) ) ज | श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र (428) Shri Prashna Vyakaran Sutra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002907
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages576
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_prashnavyakaran
File Size19 MB
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