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5 चाहिए यावत् संयतेन्द्रिय होकर धर्म का आचरण करना चाहिए।
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[प्र.] वे (प्रियरस) क्या कैसे हैं ?
[उ.] घी - तैल आदि में तलकर बनाये हुए खाजा, घेवर आदि पकवान, विविध प्रकार के पेय फ्र पदार्थ - द्राक्षापान आदि, गुड़ या शक्कर के बनाये हुए भोज्य पदार्थ, तेल अथवा घी से बने हुए मालपूवा आदि वस्तुओं में, जो अनेक प्रकार के लवण रसों से युक्त हों, मधु, माँस, बहुत प्रकार की मदिरा, बहुमूल्य सामग्री से बनाया गया भोज्य, दालिकाम्ल - खट्टी दाल, सैन्धाम्ल - रायता आदि, दही, सरक, मद्य, उत्तम प्रकार की वारुणी, सीधु तथा कापिशायन नामक मदिराएँ, अठारह प्रकार के शाक और अनेक प्रकार के मनोज्ञ वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से युक्त अनेक द्रव्यों से निर्मित भोजन में तथा इसी प्रकार के अन्य मनोज्ञ एवं सुहावने - लुभावने रसों में साधु को आसक्त नहीं होना चाहिए, यावत् उनका
स्मरण तथा विचार भी नहीं करना चाहिए।
इसके अतिरिक्त जिह्वा - इन्द्रिय से अमनोज्ञ और अरुचिकर रसों को चख कर ( उनमें रोष आदि
नहीं करना चाहिए ) ।
पदार्थों में तथा इसी प्रकार के अन्य अमनोज्ञ तथा अशुभ रसों में साधु को रोष धारण नहीं करना
[प्र.] वे अमनोज्ञ रस कौन कौनसे हैं ?
[.] रसहीन - हींग आदि के संस्कार से रहित होने के कारण रसहीन, चलित रस या बिगड़े रसों
से युक्त ठण्डा, रूखे - बिना चिकनाई के, निसत्त्व भोजन - पानी को तथा रात वासी, व्यापन्न - रंग बदले 5
हुए, सड़े हुए, अपवित्र होने के कारण अमनोज्ञ अथवा अत्यन्त विकृत हो चुकने के कारण जिनसे
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दुर्गन्ध निकल रही हो ऐसे तीखे कटु, कसैले खट्टे, शैवालरहित पुराने पानी के समान एवं नीरस 5
168. The fourth restraint is that of taste. A monk should not get
attached to pleasant and beautiful juices that are according to his taste.
[Q.] What are such juices ?
श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
[Ans.] Some preparations are made in ghee and oil. Many dishes are
prepared from grapes and sugar. Many sweats such as maalpuas are 卐 prepared. There are salty preparation also. Many types of dishes are prepared with honey, the pulp and the like after spending a lot of money. The sour pulse and churned curd is prepared. Many high class wines and intoxicating drinks such as varuni, seedhi, pishayan are prepared. There are eighteen types of vegetable preparation and many others which are pleasant in colour, smell, taste and touch. A monk should not be attached in such pleasant attractive preparations pleasant to the taste. He should not remember them. He should not even think of them.
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Shri Prashna Vyakaran Sutra
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