SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 503
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ फफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ தகத்தகதிமிதிததமிசுதததகதிமிதிமிதிததமிழமி*பூமிமிமிமிமிமிமி 卐 (31) A monk, like soul without any body cover, moves without any hindrances, freely as he desires. Elaboration-Through these illustrations the uniqueness of ascetic life, its grandeur its fullness in ascetic discipline, its self-supporting nature, its freedom from slackness, its stability, its awakening towards the good, its inner purity, its non-attachment towards the body, its 5 capability in practicing ascetic discipline has been depicted. 卐 卐 साधु अप्रतिबद्धविहारी होता है । विहार के विषय में इन किसी बन्धन से बँधा नहीं होता । अतएव निम्नोक्त फ सूत्र में विहार के सम्बन्ध में स्पष्ट उल्लेख करते हुए कतिपय अन्य गुणों पर प्रकाश डाला जा रहा है। 卐 5 It has been mentioned earlier that a monk is free from all restriction in his wanderings. So the next aphorism is about his wanderings. १६४. गामे गामे एगरायं णयरे णयरे य पंचरायं दूइज्जंते य जिइंदिए जियपरीसहे णिभओ विऊ सच्चित्ता-चित्त-मीसगेहिं दव्वेहिं विरायं गए, संचयाओ विरए, मुत्ते, लहुए, णिरवकंखे, जीविय - मरणासविप्पमुक्के णिस्संधि णिव्वणं चरितं धीरे काएण फासयंते सययं अज्झप्पज्झाणजुत्ते, णिहुए, एगे चरेज्ज धम्मं । इमं च परिग्गहवेरमण - परिरक्खणट्टयाए पावयणं भगवया सुकहियं अत्तहियं पेच्चाभावियं आगमेसिभद्दं सुद्धं णेयाउयं अकुडिलं अणुत्तरं सव्वदुक्खपावाणं विउवसमणं । परिग्रहविरमणव्रत की रक्षा के लिये भगवान ने यह उत्तम प्रवचन - उपदेश दिया है। यह प्रवचन आत्म हितकर है, परभव में उत्तम फल देने वाला है और भविष्य में कल्याण करने वाला है। यह शुद्ध है, न्यायसंगत है, सरल है, अति उत्तम है और समस्त दुःखों तथा पापों का शमन करने वाला है। १६४. ( मुनि) हर एक गांव में एक रात्रि और हर एक नगर में पाँच रात्रि तक विचरण करता है, क्योंकि वह इन्द्रिय विजेता होता है, परीषहों को जीतने वाला, निर्भय, विद्वान्- गीतार्थ, सचित्त, अचित्त 5 और मिश्र सभी द्रव्यों में वैराग्ययुक्त होता है, संग्रहवृत्ति से दूर, निर्लोभवृत्ति वाला, लघु अर्थात् तीनों प्रकार के गौरव के भार से रहित और परिग्रह के भार से रहित होता है। जीवन और मरण की आशा-आकांक्षा से विमुक्त, चारित्र - परिणाम के विच्छेद से रहित होता है, अर्थात् उसका 卐 चारित्र - परिणाम निरन्तर विद्यमान रहता है। वह निरतिचार - निर्दोष चारित्र का धैर्यपूर्वक शारीरिक फ्र क्रिया द्वारा पालन करता है। ऐसा मुनि सदा अध्यात्मध्यान में संलग्न, उपशान्त भाव तथा एकाकी - सहायकरहित अथवा रागादि से असंपृक्त होकर धर्म का आचरण करे । 卐 卐 विवेचन : उपरोक्त पाठ में कहा गया है कि मुनि को ग्राम में एक रात और नगर में पाँच रात तक ही रूकना चाहिये, उसके विषय में टीकाकार ने लिखा है 'एतच्च भिक्षुप्रतिमाप्रतिपन्नसाध्वपेक्षया सूत्रमवगन्तव्यम् । श्रु.२, पंचम अध्ययन : परिग्रहत्याग संवर Jain Education International ( 415 ) 5 - प्र. व्या. आगमोदय, पृ. १५८ Sh. 2, Fifth Chapter: Discar... Samvar For Private & Personal Use Only 5 फ्र 2 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 555 5555 5 5 5555955 फ्र www.jainelibrary.org
SR No.002907
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages576
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_prashnavyakaran
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy