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5 musical instrument, their shape of the body, their complexion, beauty of their eyes and feet, their facial expression, their youth, breasts, 5 lips, clothes, ornaments, the red mark on their forehead and the their private parts and other suchlike activities which may adversely affect the chastity, austerity and self restraint of the monk. He should not contemplate about such activities of the women in his mind. He should not speak about such things. He should not have a desire for such things.
चतुर्थ भावना - पूर्व भोग- चिन्तन- त्याग
FOURTH SENTIMENT AVOIDING RECOLLECTION OF EARLIER ENJOYMENTS
Thus a monk who is mentally detached from women, is engaged in chastity. He is detached from polluted activity of senses. He keeps his chastity quite safe.
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१५१. चउत्थं - पुव्वरय - पुव्य- कीलिय- पुव्य- संगंथगंथ-संथुया जे ते आवाह - विवाह - चोल्लगेसु यतिहि जण्णेसु उस्सवेसु य सिंगारागारचारुवेसाहिं हावभावपललिय - विक्खेव - विलास - सालिणीहिं फ अणुकूल - पेम्मिगाहिं सद्धिं अणुभूया सयणसंपओगा, उउसुहवरकुसुम- सुरभि - चंदण - सुगंधिवर - वास-धूव - सुहफरिस - वत्थ-' - भूसण- गुणोववेया, रमणिज्जा ओज्जगेय- - पउर-गड- णट्टग- जल्लमल्ल - मुट्ठिग - वेलंबग - कहग-पवग-लासग - आइक्खग - लंख - मंख - तूणइल्लतुंब - वीणिय-त
- तालायर
- पकरणाणि य बहूणि महुरसरगीय - सुस्सराई, अण्णाणि य एवमाइयाणि तव - संजम - बंभचेर- फ्र घाओवघाइयाइं अणुचरमाणेणं बंभचेरं ण ताइं समणेण लब्भा दट्टु, ण कहेउं, ण वि सुमरिउं ।
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जे एवं पुव्वरय - पुव्यकीलिय - विरइ - समिइ - जोगेण भाविओ भवइ अंतरप्पा आरयमणविरयगामधम्मे जिइंदिए बंभचेरगुत्ते ।
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१५१. चौथी पूर्वरत पूर्व क्रीड़ित विरति समिती भावना (चौथी भावना में पूर्वकाल में भोगे भोगों के स्मरण के त्याग का विधान किया गया है।) यह इस प्रकार है - पहले (गृहस्थावस्था में) किया गया रमण-विषयोपभोग, पूर्वकाल में की गई क्रीड़ाएँ- द्यूत आदि क्रीड़ा, पूर्वकाल के श्वसुरकुल - ससुराल सम्बन्धी जन, साली या साले की स्त्री आदि के साथ हुए मोहक सम्बन्ध और स्त्री पुत्रादि के साथ स्नेहादि तथा संश्रुत - पूर्व काल के परिचित जन, इस सबका स्मरण नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त वैवाहिक प्रसंग, पत्नी का द्विरागमन, चूडाकर्म- शिशु का मुण्डन तथा पर्वतिथियों में, यज्ञों - नागपूजा आदि के अवसरों पर, श्रृंगार के आगार जैसी सजी हुई, हाव-मुख की चेष्टा, भाव-चित्त के अभिप्राय, प्रललित - लालित्ययुक्त कटाक्ष, विक्षेप-ढीली चोटी, पत्रलेखा, आँखों में अंजन आदि श्रृंगार, विलास - हाथों, भौंहों एवं नेत्रों की विशेष प्रकार की चेष्टा- इन सबसे सुशोभित, अनुकूल प्रेम वाली स्त्रियों के साथ अनुभव किये हुए शयन आदि विविध प्रकार के कामशास्त्रोक्त प्रयोग, ऋतु के अनुकूल 5 A. २, चतुर्थ अध्ययन : ब्रह्मचर्य संवर
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Sh. 2, Fourth Chapter: Chastity Samvar
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