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A monk observes the vow of brahmcharya, he should therefore not
indulge in suchlike talk. He should not listen such talk. He should not $i think about such matters in his mind.
Thus a monk who has his mind influenced with avoidance of talk is about women, who is absorbed in chastity and who is totally detached from bad attitude of senses, who has full control over his senses keeps himself in complete practice of the vow of chastity (brahmacharya). तृतीय भावना-स्त्रियों के रूप-दर्शन का त्याग THIRD SENTIMENTS : AVOIDING LOOKING AT BEAUTY OF WOMEN
१५०. तइयं-णारीणं हसिय-भणिय-चेट्ठिय-विप्पेक्खिय-गइ-विलास-कीलियं, विब्बोइयणट्टगीय-वाइय-सरीर-संठाण-वण्ण-कर-चरण-णयण-लावण्ण-रूव-जोव्वण-पयोहरा-धरवत्थालंकार- भूसणाणि य, गुज्झोकासियाई, अण्णाणि य एवमाइयाइं तव-संजम-बंभचेर- घाओवघाइयाइं अणुचरमाणेणं बंभचेर ण चक्खुसा, ण मणसा, ण वयसा पत्थेयव्वाइं पावकम्माई। ___ एवं इत्थीरूवविरइ-समिइजोगेण भाविओ भवइ अंतरप्पा आरयमणविरयगामधम्मे जिइंदिए बंभचेरगुत्ते।
१५०. तीसरी स्त्री रूप दर्शन विरति समिति भावना : यह इस प्रकार है-नारियों के मधुर हास्य को, विकारमय कथन को, हाथ पैर आदि की चेष्टाओं को, विप्रेक्षण-कटाक्षयुक्त निरीक्षण को, गति-चाल
को, विलास और क्रीड़ा को, विब्वोकित-अनुकूल-इष्ट वस्तु की प्राप्ति होने पर अभिमानपूर्वक किया % गया तिरस्कार, नाट्य, नृत्य, गीत, वीणा आदि वाद्यों के वादन, शरीर का गठन, गौर श्याम आदि वर्ण, के हाथों, पैरों एवं नेत्रों का लावण्य, रूप, यौवन, स्तन, अधर-ओष्ठ, वस्त्र, अलंकार और भूषण-ललाट
की बिन्दी आदि को तथा उनके गोपनीय अंगों को एवं स्त्री सम्बन्धी अन्य अंगोपांगों या चेष्टाओं को 卐 जिनसे ब्रह्मचर्य, तप तथा संयम का घात-उपघात होता है, उन्हें ब्रह्मचर्य का अनुपालन करने वाला मुनि
न नेत्रों से देखे, न मन से सोचे और न वचन से उनके सम्बन्ध में कुछ बोले और न पापमय कार्यों की ॐ अभिलाषा करे।
इस प्रकार स्त्रीरूपविरति-समिति के योग से भावित अन्तःकरण वाला मुनि ब्रह्मचर्य में अनुरक्त । चित्त वाला, इन्द्रियविकार से विरत, जितेन्द्रिय और ब्रह्मचर्य से गुप्त-सुरक्षित होता है। ___150. The third sentiment is prohibition of looking at women. The monk who practices the vow of chastity should not attend to the laughter 4 of women and their talk which creates adverse thoughts. He should not 41 see such movements of their hands, their amorous activities, their gait, their acrobatics, their act of belittling in ego at having an article of their choice, their dance, dramatic performance, their song, their playing
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| श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
(368)
Shri Prashna Vyakaran Sutra
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