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चित्र-परिचय 22
Illustration No. 22
ब्रह्मचर्य व्रत की पाँच भावनाएँ-1 ब्रह्मचर्य नामक चौथे संवर रूप महाव्रत की पाँच भावनाएँ कही गई हैं
(1) असंसक्त वास वसति समिति भावना-ब्रह्मचर्य व्रत के साधक को ऐसे किसी स्थान पर नहीं रहना चाहिए, जहाँ स्त्रियों उठती-बैठती हों, वैश्याएँ रहती हों, नपुंसकों का है निवास स्थान हो, उसे ऐसे सभी स्थानों पर रहना वर्जित बताया गया है। क्योंकि ऐसे स्थान पर रुकने से चित्त में चंचलता उत्पन्न हो सकती है।
(2) स्त्री-कथा वर्जन समिति भावना-इस भावना का अभिप्राय यह है कि ब्रह्मचर्य व्रत के पालक साधु को स्त्रियों की सभा के बीच बैठकर वार्तालाप से बचना चाहिए। स्त्रियों से सम्बन्धित विलास, हास्य, शृंगार, उनकी चौंसठ कलाएँ, वर्ण, जाति आदि सम्बन्धित विकार उत्पादक कथाएँ नहीं करनी चाहिए।
-सूत्र 148-149, पृ. 365-367
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FIVE SENTIMENTS OF VOW OF CELIBACY (1)
There are said to be five sentiments of the great vow of celibacy, the fourth Samvar
(1) Disturbance-free place of stay-An aspirant observing the vow of celibacy should not stay at a place where women frequent, whores live, or eunuchs live. For him staying at any such place is prohibited. This is because staying at such places may disturb the required mental serenity.
(2) Refrain from talk about women -An ascetic observing the vow celibacy should avoid joining a meeting of women and talk with them. He should also avoid talking or story telling about women and their activities including their entertainment, beautification, 64 skills, complexion, and caste.
- Sutra-149, page-367
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