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चित्र-परिचय 201
Illustration No. 20
ब्रह्मचर्य की महिमा देव दाणव गन्धव्वा जक्ख रक्खस किन्नरा।
बम्भयारिं नमंसन्ति दुक्करं जे करन्ति तं।। दस समाधि के स्थान कहे गये हैं-(1) विविक्त शयनासन, (2) स्त्री कथा-वर्जन, (3) एक आसन परिहार, (4) स्त्री-शरीर-आलोकन-परिहार, (5) कामवर्द्धक शब्द श्रवण फ़ वर्जन, (6) भुक्त भोगों का चिन्तन स्मरण वर्जन, (7) विकार वर्द्धक भोजन परिहार, ॐ (8) अति भोजन वर्जन, (9) शरीर विभूषा वर्जन, (10) शब्द रूप आदि विषयों में
अनासक्ति। भी इन दस समधि स्थानों से संरक्षित दुष्कर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने वाले मुनि को देव, दानव, गंधर्व, यक्ष, राक्षस, किन्नर आदि सभी नमस्कार करते हैं।
-सूत्र 141, पृ. 360
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THE GLORY OF CELIBACY
Even divine beings like Asurs, Gandharvas, Yakshas, Rakshasas and Kinnars bow to those who practice the difficult vow of celibacy protected by the following ten places of restraint related to this vow-(1) Isolated place of sleeping and sitting. (2) Avoiding talk about women. (3) Not sitting on the same seat with women. (4) Not looking at the body of a woman. (5) Not listening to lustful talks. (6) Avoiding recalling instances of pastenjoyments. (7)Avoiding eating ofexciting food. (8)Avoiding excessive eating. (9) Avoiding embellishmentof body.(10)Apathy towards indulgence inactivities of sense organs including those of hearing and taste.
--Sutra-141; pages-360
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