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महाव्रतों का मूल : ब्रह्मचर्य BASIS OF ALL MAJOR VOWS : BRAHMCHARYA १४३. तं च इमं
पंच महव्ययसुब्बयमूलं, समणमणाइलसाहुसुचिण्णं।
वेरविरामणपज्जवसाणं, सव्वसमुद्दमहोदहितित्थं ॥१॥ १४३. यह ब्रह्मचर्य व्रत इस प्रकार है___ यह ब्रह्मचर्यव्रत पाँच महाव्रतरूप उत्तम व्रतों का मूल है, शुद्ध आचार या स्वभाव वाले मुनियों के द्वारा भावपूर्वक सम्यक् प्रकार से सेवन किया गया है, यह वैरभाव की निवृत्ति और उसका अन्त करने । वाला है तथा समस्त समुद्रों में स्वयंभूरमण समुद्र के समान दुस्तर है तथा तैरने का उपाय होने के कारण तीर्थस्वरूप है। ___143. This vow of Brahmacharya is as follows :
This vow of brahmcharya is the basis of all vows. It is practiced by all monks who observe pure conduct and behaviour. They practice it
heartily in the proper way as mentioned in the code. It liquidates the 5 feeling of enmity. It is very difficult to master as is Svayambhuraman sea. But it provides method to cross the worldly ocean. So it is Teerth.
विवेचन : पूर्वोक्त गाथा में ब्रह्मचर्य की महिमा प्रतिपादित करते हुये शास्त्रकार ने बताया है कि ब्रह्मचर्य : ॐ पाँचों महाव्रतों का मूलाधार है, क्योंकि इसके खण्डित होने पर सभी महाव्रतों का खण्डन हो जाता है और
इसका पूर्णरूपेण पालन करने पर ही अन्य महाव्रतों का पालन सम्भव है। जैसे लवण समुद्र आदि समग्र समुद्रों के
में बड़ा एवं महा दुस्तर स्वयंभूरमण समुद्र है, वैसे ही ब्रह्मचर्य सब व्रतों में महादुस्तर है तथा संसार समुद्र से - ॐ पार कराने वाला होने के कारण तीर्थ भी है।
जहाँ सम्पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन होता है, वहाँ वैर-विरोध का स्वतः अन्त हो जाता है। यद्यपि इसके _ विशुद्ध पालन करने के लिए धैर्य, दृढ़ता एवं संयम की आवश्यकता होती है, अतीव सावधानी बरतनी पड़ती है । + तथापि इसका पालन करना अशक्य नहीं है। मुनियों ने इसका पालन किया है और भगवान ने इसके पालन ॥ करने का उपाय भी बतलाया है।
गाथा में प्रयुक्त 'पंचमहव्वयसुव्वयमूलं' इस पद के अनेक अर्थ होते हैं, जो इस प्रकार हैं-(१) अहिंसा, सत्य ॥ __आदि महाव्रत नामक जो सुव्रत हैं, उनका मूल। (२) पाँच महाव्रतधारी साधुओं के उत्तम नियमों का यह मूल है, 4 (३) पाँच महाव्रतों का तथा सुव्रतों अर्थात् अणुव्रतों का मूल, और (४) हे पंचमहाव्रत ! अर्थात् हे पाँच महाव्रतों 卐 को धारण करने के कारण सुव्रत-शोभन व्रत वाले (शिष्य !) यह ब्रह्मचर्य मूल (व्रत) है।
Elaboration-In the above aphorism, the importance of the vow of chastity has been described. Chastity is the very basis of all the five vows because all the vows are broken when this vow is transgressed.
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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
(358)
Shri Prashna Vyakaran Sutra
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