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________________ 听听听听听听 乐乐5556 [ Ꭶ 卐 होने वाले पद (पर्याय-मोक्ष) को प्रदान करने वाला है। उत्तम मुनियों द्वारा सुरक्षित है, सम्यक् प्रकार से 4 आचरित है और उपदिष्ट है। श्रेष्ठ मुनियों-महापुरुषों द्वारा जो धीर, शूरवीर और धार्मिक धैर्यशाली हैं, म सदा अर्थात् कुमार आदि अवस्थाओं में भी विशुद्ध रूप से पाला गया है। यह कल्याण का कारण है।' भव्यजनों द्वारा इसका आराधन-पालन किया गया है। यह शंकारहित है अर्थात् ब्रह्मचारी पुरुष विषयों के के प्रति विरक्त होने से लोगों के लिए शंकनीय नहीं होते-उन पर कोई शंका नहीं करता। पहले के काल - 卐 में शद्ध ब्रह्मचारी पर इतना विश्वास किया जाता था कि उसे राजा के रनवास (रानियों के आवास) में 5 आने जाने की छूट थी। अशंकनीय होने से ब्रह्मचारी निर्भीक रहता है-उसे किसी से भय नहीं होता है। ॐ यह व्रत तुष रहित चावल के समान सार युक्त है। इसके पालन में कोई खेद नहीं होता और यह रागादि 5 के लेप से रहित है। चित्त की शान्ति का स्थल है और नियमतः अविचल है। यह तप और संयम का मूलाधार-नींव है। पाँचों महाव्रत इससे सुरक्षित रहते हैं अथवा पंच महाव्रतों में इसका अच्छी तरह म रक्षण-जतन आवश्यक है। यह पाँच समितियों और तीन गुप्तियों से गुप्त (रक्षित) है। (ब्रह्मचर्य की) रक्षा के लिए उत्तम ध्यान रूप सुनिर्मित कपाट वाला तथा अध्यात्म-सद्भावनामय ॐ चित्त ही (ध्यान रूपी कपाट को दृढ़ करने के लिए) लगी हुई अर्गला वाला है। यह व्रत दुर्गति के मार्ग को अवरुद्ध एवं आच्छादित कर देने वाला अर्थात् रोक देने वाला है और सद्गति के मार्ग का पथ म प्रदर्शक है। यह ब्रह्मचर्यव्रत लोक में उत्तम है। यह व्रत कमलों से सुशोभित सर (स्वतः बना तालाब) और तडाग (पुरुषों द्वारा निर्मित तालाब) के समान (मनोहर) धर्म की पाल के समान है, अर्थात् धर्म की रक्षा करने वाला है। किसी महाशकट के पहियों के आरों के लिए नाभि के समान है, अर्थात् धर्म-चारित्र का आधार है-ब्रह्मचर्य के सहारे ही ॐ क्षमा आदि धर्म टिके हुए हैं। यह किसी विशाल वृक्ष के स्कन्ध के समान है, अर्थात् जैसे विशाल वृक्ष की शाखायें, प्रशाखायें, टहनियाँ, पत्ते, पुष्प, फल आदि का आधार स्कन्ध होता है, उसी प्रकार समस्त प्रकार के धर्मों का आधार ब्रह्मचर्य है। धर्मरूपी महानगर की रक्षा करने के लिये ब्रह्मचर्य प्रकोट के कपाट की दृढ़ अर्गला के समान है। डोरी से बँधे इन्द्रध्वज के सदृश है। अनेक निर्मल गुणों से व्याप्त है। म (यह ऐसा आधारभूत व्रत है) जिसके भंग होने पर सहसा-एकदम सब विनय, शील, तप और गुणों का ॐ समूह मिट्टी के फूटे घड़े की तरह नष्ट हो जाते हैं, दहीं की तरह मथित हो जाते हैं, आटे की भाँति ॥ चूर्ण-चूरा-चूरा हो जाते हैं, काँटे लगे शरीर की तरह शल्ययुक्त हो जाते है, पर्वत से लुढ़की शिला के ॐ समान लुढ़का हुआ-गिरा हुआ, चीरी या तोड़ी हुई लकड़ी की तरह खण्डित हो जाते हैं तथा दुरवस्था को प्राप्त और अग्नि द्वारा दग्ध होकर बिखरे काष्ठ के समान विनष्ट हो जाते हैं। वह ब्रह्मचर्य भगवान है-अतिशयसम्पन्न है। 141. Sudharm Swami says to his principle disciple Jambu SwamiO Jambu ! The vow of chastity is after the vow of non-stealing. The vow of chastity is at the root of all austerities like fasting, codes, special qualities, knowledge, perception, conduct, right belief and humility. It Ꭶ 听听听听 55555555555555555555 | श्रु.२, चतुर्थ अध्ययन : ब्रह्मचर्य संवर (347) Sh.2, Fourth Chapter: Chastity Samvar 白乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听。 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002907
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages576
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_prashnavyakaran
File Size19 MB
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