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கதித்தமி*********************************************
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पिछले अध्ययन में तृतीय संवरद्वार अदत्तादानविरमणव्रत का निरूपण किया गया है। अचौर्य महाव्रत का सम्यक् प्रकार से परिपालन ब्रह्मचर्य व्रत को धारण और पालन करने पर ही हो सकता है।
5 इसलिये अदत्तादानविरमण के पश्चात् ब्रह्मचर्य व्रत का निरूपण किया जा रहा है।
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चतुर्थ अध्ययन : ब्रह्मचर्य
In the third gateway of Samvar the vow of avoiding stealing (adatt) has been described. The practice of this vow can be properly done only if one takes the vow of chastity (brahmcharya) and practices it properly. After the vow of non-stealing, the vow of chastity is going to be discussed.
FOURTH CHAPTER : BRAHMCHARYA (CHASTITY)
ब्रह्मचर्य की महिमा IMPORTANCE OF CHASTITY
१४१. जंबू ! इत्तो य बंभचेरं उत्तम-तव-नियम - णाण - दंसण - चरित्त - सम्मत्त - विणय- मूलं, यम-नियम - गुणप्पहाणजुत्तं, हिमवंतमहंततेयमंतं, पसत्थगंभीरथिमियमज्झं, अज्जवसाहुजणाचरियं, मोक्खमग्गं, विसुद्धसिद्धिगइणिलयं, सासयमव्वाबाहमपुणब्भवं, पसत्थं, सोमं, सुभं, सिवमयलमक्खयकरं, जइवरसारक्खियं, सुचरियं, सुभासियं, णवरि मुणिवरेहिं महापुरिसधीरसूर धम्मियधिइमंताण य सया विसुद्धं, सव्वं भव्वजणाणुचिण्णं, णिस्संकियं णिन्भयं णित्तुसं, णिरायासं णिरुवलेवं णिव्बुइघरं णियमणिप्पकंपं तवसंजममूलदलियणेम्मं पंचमहव्वयसुरक्खियं समिइगुत्तिगुत्तं ।
झाणवरकवाडसुकयं अज्झष्पदिण्णफलिहं सण्णद्धोच्छइयदुग्गइपहं सुगइपहदेसगं च लोगुत्तमं च। वयमिणं पउमसरतलागपालि भूयं महासगडअरगतुंबभूयं महाविडिमरुक्खखंधभूयं महाणगरपागारकवाडफलिहभूयं रज्जुपिणिद्धो व इंदकेऊ विसुद्धणेगगुणसंपिणद्धं, जम्मिय भग्गमि होइ सव्वं संभग्गमथियचुण्णियकुसल्लिय - पल्लट्ट - पडिय -खंडिय - परिसडिय - विणासियं विणयसीलतवणियम - गुणसमूहं । तं बंभं भगवंतं ।
१४१. श्री सुधर्मा स्वामी अपने प्रमुख शिष्य जम्बू स्वामी से कहते हैं- हे जम्बू ! इस अदत्तादानविरमण के बाद ब्रह्मचर्य व्रत है। यह ब्रह्मचर्य व्रत, उत्तम तप का, नियमों-उत्तरगुणों का,
5 ज्ञान का दर्शन का, चारित्र का, सम्यक्त्व का और विनय का मूल है। यह अहिंसा आदि यमों और अभिग्रहादि रूप नियम के प्रधान गुणों से युक्त है। यह हिमवान् पर्वत से भी महान् और तेजोवान् है || इसका पालन करने से साधकों का अन्तःकरण उदार, गम्भीर और स्थिर हो जाता है। यह सरलात्मा साधुजनों द्वारा आचरित है और मोक्ष का मार्ग है। विशुद्ध - रागादिरहित सिद्ध गति का आश्रय है। शाश्वत एवं बाधा रहित तथा पुनर्भव से रहित बनाने वाला है। यह प्रशस्त - उत्तम गुणों वाला,
सौम्य - शुभ या सुखरूप है। शिव सर्व प्रकार के उपद्रवों से रहित, अचल और अक्षय - कभी क्षीण न
सहसा
श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
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Shri Prashna Vyakaran Sutra
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