________________
फ्र
फ्र
卐
5
Fifth contemplation is humility towards co-religionist. A monk who practices the same code of conduct and has the same faith is called coreligionist. The attention given by other monks at the time of illness is called upakarn. A monk should be in a state of humility at the time of 5 upakarn and also when one is completing the period of long fasting. In other words he should first seek permission. He should not compel others. He should seek permission of his spiritual master or those who are there. Humility at the time of taking lessons or seeking clarification about scriptures means that he should properly bow to them according to the code of humility at the time of taking or giving food means that he should take or offer only with the permission of the spiritual master. Humility at the time of going out and entering in the Upashraya means that he should utter the words 'avashyaki' and 'Naishedhiki' respectively at those times. In fact every activity should be according the code laid down in the scriptures and humility lies in following that code.
卐
55555
5
5
卐
卐
उपसंहार CONCLUSION
१४०. एवमिणं संवरस्स दारं सम्मं संवरियं होइ, सुप्पणिहियं, एवं जाव पंचहिं विकारि मण - वयण काय - परिरक्खिएहिं णिच्चं आमरणंतं च एस जोगो णेयव्वो धिइमया मइमया अणासवो 5 अकलुसो अछिद्दो अपरिस्सावी असंकिलिट्ठो सुद्धो सव्वजिणमणुण्णाओ ।
एवं तइयं संवरदारं फासियं पालियं सोहियं तीरियं किट्टियं आराहियं आणाए अणुपालियं भवइ ।
एवं गाया भगवा पणवियं परूवियं पसिद्धं सिद्धं सिद्धवरसासणमिणं आघवियं सुदेसियं पसत्थं । ॥ तइयं संवरदारं समत्तं त्ति वेमि ॥
१४०. इस प्रकार यह तीसरा संवर द्वार मन-वचन-काया द्वारा पांच भावनाओं के चिन्तन प्रयोग
से सुरक्षित होकर साधु के दिल-दिमाग में संस्कार रूप में अच्छी तरह बैठ जाता है। इन पांच भावनाओं
卐
5
5 का पालन जीवन पर्यन्त करना चाहिए। यह महाव्रत आश्रव का निरोधक, कलुषित भावों से रहित 卐 अछिद्र, शुभ भावों से युक्त एवं संक्लेश से रहित है। यह भावना योग समस्त जिनेन्द्रों द्वारा अनुज्ञात है ।
卐
फ इस प्रकार यह तीसरा संवर द्वार सम्यक् रूप से पालित होता है, शोभित होता है। पार पहुंचाया जाता 5
5 है। कीर्तित एवं आराधित होता है। ऐसा तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी ने कहा है । प्ररूपित किया है।
5
卐
卐
यह प्रसिद्ध एवं प्रमाणों से सिद्ध है । सुप्रतिष्ठित है। भव्य जीवों के लिये इसका उपदेश किया गया है। यह 5 5 प्रशस्त कल्याणकारी मंगलमय है।
॥ तृतीय संवरद्वार समाप्त ॥ वैसा मैं कहता हूँ (जैसा मैंने सुना है ।)
卐
श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
Jain Education International
(344)
For Private & Personal Use Only
Shri Prashna Vyakaran Sutra
फ्र
卐
फ्र
www.jainelibrary.org