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________________ 5 does not repent after making any offering or after serving others. He is expert in properly dividing the articles among Acharya, Upadhyaya and others. He stores the things properly. He is expert in assisting others in need. Such a monk is truly practicing the vow of non-stealing. 卐 卐 卐 5 पालन करने में समर्थ होता है। शास्त्रकार ने अचौर्य व्रत की आराधना को सरल बनाने के लिये वैयावृत्य - सेवा 5 करने का उल्लेख किया है। वैयावृत्य (सेवा) के दस भेद हैं, जो इस प्रकार हैं 5 卐 5 卐 5 5 5 फ्र 5 विवेचन : उपरोक्त पाठ बताया गया है कि अस्तेयव्रत की आराधना के लिए किन-किन योग्यताओं की 91 92 93 94 95 958 आवश्यकता है? जिस साधक में मूल पाठ में उल्लिखित गुण विद्यमान होते हैं, वही वास्तव में इस व्रत का 卐 ७. साधर्मिक-समान वेष और समान धर्मानुयायी । ८. कुल - एक गुरु के शिष्यों का समुदाय अथवा एक वाचनाचार्य से ज्ञानाध्ययन करने वाले । ९. गण - अनेक कुलों के समूह या वृद्ध साधुओं की शिष्य परम्परा । १०. संघ - साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविकाओं का समूह । इन सबकी वैयावृत्य निर्जरा के हेतु करनी चाहिए, यश-कीर्ति आदि के लिए नहीं। भगवान ने वैयावृत्य को 5 5 आभ्यन्तर तप के रूप में प्रतिपादित किया है। इसका सेवन दोहरे लाभ का कारण है- वैयावृत्यकर्त्ता कर्मनिर्जरा का लाभ करता है और जिनका वैयावृत्य किया जाता है, उनके चित्त में समाधि, सुख-शान्ति उत्पन्न होती है। अर्थात्-धर्म की साधना के लिए विधिपूर्वक आचार्य आदि के लिए अन्न आदि उपयोगी वस्तुओं का संग्रह करना - प्राप्त करना वैयावृत्य कहलाता है। वैयावृत्य के दस पात्र हैं। साधु को इन दस की सेवा करनी चाहिए, अतएव वैयावृत्य के भी दस प्रकार होते हैं। १. आचार्य - संघ के नायक, पंचविध आचार का पालन करने-कराने वाले। ५. ग्लाग - रुग्ण मुनि । ६. शैक्ष- नवदीक्षित । २. उपाध्याय - विशिष्ट श्रुतसम्पन्न, साधुओं को सूत्रशिक्षा देने वाले । ३. स्थविर - श्रुत, वय अथवा दीक्षा की अपेक्षा से वृद्ध साधु, अर्थात् स्थानांग - समवायांग आदि आगमों के विज्ञाता, साठ वर्ष से अधिक वय वाले अथवा कम से कम बीस वर्ष की दीक्षा वाले । ४. तपस्वी - बेला-तेला आदि तथा आतापन योग आदि करने वाले । वेयावच्चं वावडभावो इह धम्मसाहणनिमित्तं । अन्नाइयाण विहिणा, संपायणमेस भावत्थो ॥ आयरिय-उवज्झाए - थेर- तवस्सी - गिलाण - सेहाणं । साहम्मिय-कुल- गण - संघ-संगयं तमिह कायव्वं ॥' १. अभयदेव टीका से उद्धृत । श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र Jain Education International (332) For Private & Personal Use Only Shri Prashna Vyakaran Sutra फ़फ़ ब फफफफफफफफफफ 5 卐 卐 5 www.jainelibrary.org
SR No.002907
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages576
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_prashnavyakaran
File Size19 MB
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