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आस्रवद्वार AASRAVA DVAAR
प्रथम अध्ययन : हिंसा FIRST CHAPTER : VIOLENCE
१. जंबू ! इणमो अण्हय-संवर विणिच्छयं, पवयणस्स णिस्संदं।
वोच्छामि णिच्छयत्थं, सुभासियत्थं महेसीहिं ॥१॥ पंचविहो पण्णत्तो, जिणेहिं इह अण्हओ अणाईओ। हिंसामोसमदत्तं अब्बंभपरिग्गरं चेव ॥२॥ जारिसमो जं णामा, जह य कओ जारिसं फलं देइ।
जे वि य करेंति पावा, पाणवहं तं णिसामेह॥३॥ १. आर्य सुधर्मा स्वामी अपने शिष्य जम्बू स्वामी से कहते हैं-जम्बू ! आस्रव और संवर को भलीभाँति जानने और समझने के लिए यह सूत्र सम्पूर्ण जिन प्रवचन का साररूप है अर्थात् जिन प्रवचन का निचोड़ है। दोनों तत्त्वों का सम्यक् निश्चय करने के लिए महर्षियों-तीर्थंकरों एवं गणधरों आदि के द्वारा यह समीचीन रूप से कहा गया है।
जिनेश्वर देव ने इस जगत् में अनादि आस्रव के पाँच प्रकार बताये हैं-(१) हिंसा, (२) असत्य, (३) अदत्तादान, (४) अब्रह्म, और (५) परिग्रह (मूर्छा-ममत्व) ॥२॥
प्राणवधरूप प्रथम आस्रव है। वह जैसा है, उसके जो-जो नाम हैं, जिन पापी प्राणियों द्वारा वह जिस रूप में, जिस प्रकार किया जाता है और जैसा-(दुःखमय) फल प्रदान करता है, उन सबको तुम सुनो॥३॥
1. Reverend Sudharma Swami tells his disciple Jambu Swami-O Jambu ! This text is the very essence of entire teaching of the omniscient in order to properly understand the inflow of Karma (Aasrava) and the stoppage of the said inflow (Samvar). In other words it is the gist of the sermon of the Jina. It is lucidly said by the great sages-Tirthankars and the Ganadhars in order to explain in detail the two essentials.
The omniscient has laid down that Aasrava which has been in existence since beginningless period is of five types namely-(i) violence, ii) falsehood, (iii) stealing, (iv) non-chastity, and (v) covetousness parigraha).
ग्रु.१, प्रथम अध्ययन : हिंसा आश्रय
(1)
Sh.1, First Chapter: Violence Aasrava
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