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उल्लिखित पाठ में 'तपस्तेन' अर्थात् 'तप का चोर' आदि पदों का प्रयोग किया गया है, उनका उल्लेख 9 दशवैकालिकसूत्र में भी आया है। स्पष्टीकरण इस प्रकार हैॐ तपःस्तेन-किसी स्वभावतः कृशकाय साधु को देखकर किसी ने पूछा-महाराज, अमुक गच्छ में मासखमण के 卐 की तपस्या करने वाले सुने हैं, क्या आप वही मासक्षपक हैं ? ॐ यह सुनकर वह कृशकाय साधु मासक्षपक न होते हुए भी यदि अपने को मासक्षपक कह देता है तो वह तप 5 का चोर है अथवा धूर्ततापूर्वक उत्तर देता है- 'भई, साधु तो तपस्वी होते ही हैं, उनका जीवन ही तपोमय है।'
इस प्रकार गोलमोल उत्तर देकर वह तपस्वी न होकर भी यह धारणा उत्पन्न कर देता है कि यही मासक्षपक म तपस्वी है। ऐसा साधु तपःस्तेन कहलाता है। ॐ वचनस्तेन-इसी प्रकार किसी वाग्मी-कुशल व्याख्याता साधु का यश छल के द्वारा अपने ऊपर ओढ़ लेना-धूर्तता से अपने को वाग्मी प्रकट करने या कहने वाला वचनस्तेन साधु कहलाता है।
रूपस्तेन-किसी सुन्दर रूपवान् साधु का नाम किसी ने सुना है। वह किसी दूसरे रूपवान् साधु को देखकर 卐 पूछता है-क्या अमुक रूपवान् साधु आप ही हैं ? 'वही साधु' न होने पर भी वह साधु यदि हाँ कह देता है
अथवा छलपूर्वक गोलमोल उत्तर देता है, जिससे प्रश्नकर्ता की धारणा बन जाये कि यह वही प्रसिद्ध रूपवान् साधु है, तो ऐसा कहने वाला साधु रूप का चोर है। ____ रूप दो प्रकार का है-शरीर की सुन्दरता और सुविहित साधु का वेष। जो साधु सुविहित तो न हो किन्तु ॐ लोगों को अपने प्रति आकर्षित करने के लिए, अन्य साधुओं की अपेक्षा अपनी उत्कृष्टता प्रदर्शित करने के के लिए सुविहित साधु का वेष धारण कर ले-मैला चोलपट्ट, मैल से भरा शरीर, सिर्फ दो पात्र आदि रखकर :
विचरे तो वह रूप का चोर कहलाता है। 卐 आचारस्तेन-जो साधु समाचारी आदि का चोर है, वह आचारस्तेन कहलाता है। किसी साधु के आचार की
उत्कृष्ट ख्याति किसी ने सुनी है। वह किसी दूसरे साधु से पूछता है-क्या आप वही हो जिनके आचार की ख्याति ॐ सुनी है। वही साधु न होने पर भी यदि हाँ कहे अथवा छलपूर्वक उत्तर दे कि साधु तो आचारवान् होते ही हैं। ॥
ऐसा कहने वाला साधु आचार का चोर है। 9 भावस्तेन-जो साधु श्रुतज्ञान आदि भाव की चोरी करे वह भावस्तेन कहलाता है। किसी और के मुँह से ॥
दूसरे साधु का शास्त्र संबंधी अपूर्व व्याख्यान सुनकर जो साधु ऐसा कहे कि यह व्याख्यान तो मैंने ही दिया है तो म ॐ वह साधु भाव का चोर है।
Elaboration-The procedure of practising the vow of non-stealing has 5 been narrated here in detail. It has been stated in the beginning that a practitioner of this vow should not pick up or take any thing however insignificant it may be, without the permission of its owner. The thing concerned may be costly or of a little value. It may be in large quantity or in small quantity. It may be thin or thick. It may be sand or stone. It should not be accepted without the consent of the owner. In order to
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| श्रु.२, तृतीय अध्ययन : दत्तानुज्ञात संवर
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Sh.2, Third Chapter: To Get... Samvar
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