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चित्र-परिचय 18
Illustration No. 18
अस्तेय व्रत चित्र में दिखाया गया है कि अस्तेय व्रत के आराधक साधु रास्ते में पड़ी हुई कीमती से कीमती वस्तु भी ग्रहण नहीं करते हैं। यहाँ तक कि आज्ञा प्राप्त किये बिना उपाश्रय में भी नहीं रुकते हैं।
उदाहरण द्वारा अस्तेय व्रत का स्वरूप स्पष्ट किया गया है-गोचरी के लिए आये हुए ॐ साधु को गृहस्थ ने उनके बीमार गुरुजी के लिए रस दिया। रस लेकर वह गुरुजी के पास गये परन्तु
गुरुजी ने उसे लेने से मना कर दिया। साधु वापस उस रस को लेकर गृहस्थ के पास आये और दोबारा म गृहस्थ की आज्ञा प्राप्त कर रस स्वयं ग्रहण किया। इससे स्पष्ट हो जाता है कि जो वस्तु जिसके के लिए दी गई है, उसके अलावा दूसरे को उपयोग करना भी इस व्रत के आराधक को नहीं कल्पता।
नीचे के चित्र में बताया गया है कि व्याख्यान देने के लिए उपाश्रय में आये साधु पाट का प्रयोग भी आज्ञा लेकर ही करते हैं। जिससे स्पष्ट होता है कि उपाश्रय में प्रवेश की आज्ञा लेने पर भी उसमें पड़ी हुई वस्तुओं के प्रयोग के लिए अलग से आज्ञा लेनी चाहिए।
-सूत्र 131, पृ. 319
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VOW OF NON-STEALING The illustration at top left shows that an ascetic observing vow of non-stealing does not ake even costly things lying on the path. He even does not stay in an Upashraya without getting permission (top right illustration).
Example of immaculate observation of the vow of non-stealing -A householder gives juice to an alms-seeking ascetic meant for his teacher. The ascetic brings the juice to the teacher who declines to consume it. The ascetic returns to the householder and only after seeking his permission drinks the juice himself. This clarifies that an observer of this vow cannot use a thing meant for some specific person.(center illustration)
The illustration at the bottom shows an ascetic, staying in an Upashraya, uses even a seat for discourse after seeking permission. This clarifies that even after getting permission to stay at a place an ascetic must seek permission he wants to use anything lying there.
- Sutra-131, pages-319
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