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E gateway of Samvar-becomes rightly established, rightly practiced and
rightly conducted. So the practitioner of religious order who is perseverant and intelligent, he should continuously practice it throughout his life as it is defined by all the Tirthankars. It stops the inflow of Karmic matter. It destroys disturbances. It stops the entry of the water of Karma. It is dirtless and without any holes. It is without the
flow of Karmas. म १२८. एवं बिइयं संवरदारं फासियं पालियं सोहियं तीरियं किट्टियं अणुपालियं आणाए आराहियं
भवइ। एवं णायमुणिणा भगवया पण्णवियं परूवियं पसिद्धं सिद्धं सिद्धवरसासणमिणं आघवियं सुदेसियं पसत्थं।
॥ बिइयं संवरदारं समत्तं ॥ त्ति बेमि॥ __१२८. इस प्रकार (पूर्वोक्त रीति से) सत्य नामक संवरद्वार उचित समय पर अंगीकृत, पालित, म शोधित-निरतिचार आचरित या शोभाप्रदायक, तीरित-अन्त तक पार पहुँचाया हुआ, कीर्तित-दूसरों ॥
के समक्ष आदरपूर्वक कथित, अनुपालित-निरन्तर सेवित और भगवान की आज्ञा के अनुसार के आराधित होता है। इस प्रकार ज्ञात वंश में उत्पन्न-भगवान महावीर स्वामी ने इस सिद्धवरशासन का
कथन किया है, विशेष प्रकार से विवेचन किया है। यह तर्क और प्रमाण से सिद्ध है, सुप्रतिष्ठित किया है # गया है, भव्य जीवों के लिए इसका उपदेश किया गया है, यह प्रशस्त-कल्याणकारी-मंगलमय है।
॥ द्वितीय संवरद्वार समाप्त ॥ वैसा मैं कहता हूँ। (जैसा मैंने सुना है।) ___विवेचन : इस प्रकार सुबोधिनी व्याख्या सहित द्वितीय संवर द्वार समाप्त हुआ। उल्लिखित पाठों में प्रस्तुत प्रकरण में कथित अर्थ का उपसंहार किया गया है। सुगम होने से इनके विवेचन की आवश्यकता नहीं हैं।
128. If in the above-mentioned form truth, the gateway of Samvar, is 45 continuously practiced according to the order laid down by the 4 omniscient; it is accepted, nourished and faultlessly practiced at the proper time; it provides grace. It leads to the end of the mundane world.
Bhagavan Mahavir, the omniscient has described the order of the i omniscient in this manner. He has narrated in detail. It is based on logic
and proper proof. It is well established. He has preached it for the worthy. It is noble, beatific and auspicious. ___Elaboration-In the above-mentioned aphorism, the purport of this aphorism has already been explained. It is easily intelligible. So it does not need any further elucidation.
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• SECOND GATEWAY OF SAMVAR CONCLUDED
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श्रु.२, द्वितीय अध्ययन : सत्य संवर
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Sh.2, Second Chapter: Truth Samvar
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