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5 प्रकार करना उचित है ? यदि कोई मनुष्य अपनी वाणी का प्रयोग पाप के उपार्जन में करता है तो वह निश्चय
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फ ही अभागा है, विवेकविहीन है। इस वाणी की सार्थकता और सदुपयोग यही हो सकता है कि इसे धर्म और
5 पुण्य की प्राप्ति में व्यय किया जाये। यह तभी सम्भव है जब इसे पापोपार्जन का निमित्त न बनाया जाये।
restraints may take re-birth as a celestial being but due to his clownish nature, he shall take birth in gods of low category. He does not take birth
in gods of heavenly abode. A monk who observes silence develops
restraint of hands, feet and mouth. He then possess the qualities of courage, truth and simplicity.
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विवेचन : उपरोक्त पाँच सूत्रों में अहिंसा महाव्रत के समान सत्य महाव्रत की पाँच भावनायें बताई हैं, इनकी
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निरन्तर अनुप्रेक्षा करते रहने से ये भावनायें साधक की अन्तर आत्मा में मजबूत संस्कार रूप में जम जाती है और यह संस्कार अमिट हो जाते हैं।
वाणी व्यवहार मानव की एक महत्वपूर्ण विशिष्टता है । पशु-पक्षी भी अपनी-अपनी वाणी से बोलते हैं किन्तु मानव की वाणी की अर्थपरकता या सोद्देश्यता उनकी वाणी में नहीं होती। अतएव व्यक्त वाणी मनुष्य एक अनमोल विभूति है।
5 प्रतिपादन किया गया है।
विचारणीय है कि जो वस्तु अनमोल है, जो प्रबलतर पुण्य के प्रभाव से प्राप्त हुई है, उसका उपयोग किस
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5 है- सोच-विचार किये बिना, जल्दबाजी में, जो मन में आये, बोल देना। इस प्रकार बोल देने से अनेकों बार
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5 घोर अनर्थ उत्पन्न हो जाते हैं। 'अन्धे की सन्तान अन्धी होती है' द्रौपदी के इस अविचारित वचन ने कितने
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इसी उद्देश्य से सत्य को महाव्रत के रूप में स्थापित किया गया है और इससे पूर्व सत्य की महिमा का
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की
प्रधान कारण पाँच हैं। उनके त्याग की यहाँ प्रेरणा की गई है। असत्य का एक कारण
5 जिसके विषय में सम्यक् प्रकार से विचार न कर लिया गया हो, जिसके परिणाम के सम्बन्ध में पूरी तरह
भीषण अनर्थ उत्पन्न नहीं किये ? स्वयं द्रौपदी को अपमानित होना पड़ा, पाण्डवों की दुर्दशा हुई और महाभारत
जैसा दुर्भाग्यपूर्ण संग्राम हुआ, जिसमें करोड़ों को प्राण गँवाने पड़े। अतएव जिस विषय की जानकारी न हो,
5 अवसर नहीं आता, उसे लांछित नहीं होना पड़ता और उसका सत्यव्रत अखंडित रहता है।
सावधानी न रखी गई हो, उस विषय में वाणी का प्रयोग करना उचित नहीं है। तात्पर्य यह है कि जो भी बोला
जाये, सुविचारित एवं सुज्ञात ही बोला जाये। भलीभाँति विचार करके बोलने वाले को पश्चाताप करने का
5 सर्वार्थसिद्धि टीका में इसका अर्थ किया गया है- 'अनुवीचिभाषणम् - विरवयानुभाषणम्' अर्थात् निरवद्य भाषा का
5 प्रयोग करना अनुवीचिभाषण कहलाता है । तत्त्वार्थभाष्य में भी सत्यव्रत की प्रथम भावना के लिए 'अनुवीचि '
सत्य महाव्रत की पांच भावनाओं में प्रथम भावना का नाम 'अनुवीचिसमिति' कहा गया है । तत्त्वार्थसूत्र की
45 अन्य दोषों से बचना भी इस भावना के अन्तर्गत है ।
भाषण शब्द का ही प्रयोग किया गया है। अतएव भलीभाँति विचारकर बोलने के साथ-साथ भाषा सम्बन्धी
दूसरी भावना क्रोध निग्रह रूप क्षमा भावना का पालन करने के लिए क्रोधवृत्ति पर विजय प्राप्त करना भी
आवश्यक है। क्रोध ऐसी वृत्ति है जो मानवीय विवेक को विलुप्त कर देती है और कुछ काल के लिए पागल बना
श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
Shri Prashna Vyakaran Sutra
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