________________
)
))
)
)
)
385955555555555555555555555555555555
speak in a distorted manner. He should not speak without proper 5 thought. He should not speak such word that may cause trouble to
others. He should not speak with an attitude of causing harm. He should speak what is true, beneficial, limited and reflects proper meaning. It should be clear and faultless and logical. It should be in proper context, distinct and properly thought of from all angles. A monk should speak in such a manner according to the situation.
Thus a monk should ensure thoughtful speech taking care that it is causes no harm. He should have restraint on hands, feet, eyes and mouth. Such a monk is a true practitioner of courage, truth and selfrestraint.
)
))
)
FFFFFFFFFFFFFhisFF$步步事情
))
)
)
))
)
)
)
ITTE
दूसरी भावना-अक्रोध SECOND SENTIMENT : NOT TO BE ANGRY 5 १२३. बिइयं-कोहो ण सेवियव्वो, कुद्धो चंडिक्किओ मणूसो अलियं भणेज, पिसुणं भणेज,
फरुसं भणेज, अलियं-पिसुणं-फरुसं भणेज्ज, कलहं करिज्जा, वेरं करिज्जा, विकहं करिज्जा, ॐ कलह-वेरं-विकहं करिज्जा, सच्चं हणेज्ज, सीलं हणेज्ज, विणयं हणेज्ज, सच्चं-सील-विणयं हणेज्ज,
वेसो हवेज, वत्थु हवेज, गम्मो हवेज्ज, वेसो-वत्थु-गम्मो हवेज्ज, एयं अण्णं च एवमाइयं भणेज्ज कोहग्गिसंपलित्तो तम्हा कोहो ण सेवियव्यो। एवं खंतीइ भाविओ भवइ अंतरप्पा संणयकर-चरण-णयण-वयणो सूरो सच्चज्जवसंपण्णो।
१२३. दूसरी भावना क्रोधनिग्रह-क्षमाशीलता है। (सत्य के आराधक को) क्रोध का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि क्रोधी मनुष्य रौद्रभाव वाला हो जाता है और (ऐसी अवस्था में) मिथ्या वचन क बोलता है, वह चुगलखोरी के वचन बोलता है, कठोर वचन बोलता है। मिथ्या, पिशुन और
कठोर-तीनों प्रकार के वचन बोलता है। कलह करता है, वैर-विरोध करता है, विकथा करता है तथा : । कलह-वैर-विकथा-ये तीनों करता है। वह सत्य का घात करता है, शील-सदाचार का नाश करता है,
विनय का विघात करता है और सत्य, शील तथा विनय-इन तीनों का घात करता है। असत्यवादी द्वेष : ॐ का पात्र बनता है, दोषों का घर बन जाता है और तिरस्कार का पात्र बनता है तथा द्वेष, दोष और तिरस्कार-इन तीनों का पात्र बनता है। क्रोधाग्नि से प्रज्वलित हृदय मनुष्य ऐसे और इसी प्रकार के है
अन्य पापयुक्त वचन बोलता है। अतएव क्रोध का सेवन नहीं करना चाहिए। इस तरह क्षमा से भावित ॐ सुसंस्कृत अन्तरात्मा-अन्तःकरण वाला हाथों, पैरों, नेत्रों और मुख को संयमित करने वाला, धर्मवीर साधक, सत्यता और सरलता से परिपूर्ण हो जाता है।
123. Second sentiment is control over anger-a state of forgiveness. One who practices truth, he should not be in a fit of anger. An angry person is ferocious. In such a state he can adopt falsehood in speech. He
))
)
)
i
$$$$$
$$$
卐5555555555555
$$$$
श्रु.२, द्वितीय अध्ययन : सत्य संवर
(309)
Sh.2, Second Chapter: Truth Samvar
$$
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org