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9 भाषा के बारह प्रकार
आगमों में भाषा के विविध दृष्टियों से अनेक भेद-प्रभेद बताये गये हैं। उन्हें विस्तार से समझने के के लिए दशवैकालिक तथा प्रज्ञापनासूत्र का भाषापद देखना चाहिए। बोलियों की दृष्टि से उस समय के भारतवर्ष में प्रचलित भाषायें बारह मानी जाती थीं इसलिये प्रस्तुत पाठ में उस समय प्रचलित बारह
प्रकार की भाषाएँ बतलाई गई हैं, जिनके नाम ये हैं-(१) प्राकृत, (२) संस्कृत, (३) मागधी, (४) पैशाची, (५) शौरसेनी, और (६) अपभ्रंश। ये गद्य और पद्य के भेद मिलाकर बारह प्रकार की हैं।
सोलह प्रकार के वचन 卐 एक वचन, बहुवचन आदि वचनों स्त्री-पुरुष आदि तीन लिंगों, प्रत्यक्ष-परोक्ष आदि तीनों कालों का + तथा अपनीतवचन और अध्यात्मवचन आदि के विवेक सत्यवादी को होना चाहिये इस अपेक्षा से 16 E प्रकार के वचनों का उल्लेख मूल पाठ में किया है। टीकाकार श्री अभयदेव सूरि ने सोलह प्रकार के वचन . निम्नलिखित गाथा उद्धृत करके गिनाये हैं
वयणतियं लिंगतियं कालतियं तह परोक्ख पच्चक्खं।
उवणीयाइ चउक्कं अज्झत्थं चेव सोलसमं॥ अर्थात् वचनत्रिक, लिंगत्रिक, कालत्रिक, परोक्ष, प्रत्यक्ष, अपनीत आदि चतुष्क और सोलहवाँ अध्यात्मवचन, ये सब मिलकर सोलह वचन हैं।
वचनत्रिक-एकवचन, द्विवचन, बहुवचन। लिंगत्रिक-स्त्रीलिंग, पुंलिंग, नपुंसकलिंग। कालत्रिक-भूतकाल, वर्तमानकाल, भविष्यत्काल। प्रत्यक्षवचन-यथा यह पुरुष है। परोक्षवचन-यथा वह मुनिराज।
अपनीतादिचतुष्क-(१) अपनीतवचन अर्थात् प्रशंसा का प्रतिपादक वचन, जैसे-यह रूपवान् है। 卐 (२) उपनीतवचन-दोष प्रकट करने वाला वचन, जैसे यह दुराचारी है।
(३) उपनीतापनीतवचन-प्रशंसा के साथ निन्दावाचक वचन, जैसे-यह रूपवान् है किन्तु दुराचारी है। 4 (४) अपनीतोपनीतवचन-निन्दा के साथ प्रशंसा प्रकट करने वाला वचन, जैसे-यह दुराचारी है किन्तु
रूपवान् है। ___अध्यात्मवचन-जिस अभिप्राय को कोई छिपाना चाहता है, फिर भी अकस्मात् उस अभिप्राय को प्रकट कर देने वाला वचन। जैसे – मैं दुःखी हूँ अथवा आत्मा को लेकर अध्यात्म भावना से वचन योग करना अध्यात्म वचन कहलाता है। ___अतः दस प्रकार के सत्य का, बारह प्रकार की भाषा का और सोलह प्रकार के वचनों का संयमी + पुरुष को तीर्थंकर भगवान की आज्ञा के अनुसार, अवसर के अनुकूल प्रयोग करना चाहिए, जिससे में किसी को पीड़ा उत्पन्न न हो-जो हिंसा का हेतु न बने।
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| श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
(304)
Shri Prashna Vyakaran Sutra
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