SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 373
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 99999999955555555555555555555555 )) 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 ॐ सत्य के (सुरक्षा-कवच को) धारण करने वाले मनुष्य चारों ओर से तलवारों के घेरे में घिरे होने पर भी अक्षत-शरीर (सकुशल) संग्राम से बाहर निकल आते हैं। म सत्यवादी मानव वध, बन्धन सबल प्रहार और घोर वैर-विरोधियों के बीच में से मुक्त हो जाते हैं-बच निकलते हैं। सत्यवादी शत्रुओं के घेरे में से बिना किसी क्षति के सकुशल बाहर आ जाते हैं। ॐ सत्य वचन में अनुरागी जनों का देवता भी सान्निध्य करते हैं-उसके साथ रहकर उनकी सेवा-सहायता है करते हैं। म तीर्थंकरों द्वारा भली प्रकार से वर्णित यह सत्य भगवान् दस प्रकार का है। इसे चौदह पूर्वो के ज्ञाता ॐ महामुनियों ने प्राभृतों (पूर्वगत विभागों) से जाना है एवं महर्षियों ने इसे सिद्धान्त रूप में जाना ॐ है-साधुओं के द्वितीय महाव्रत में सिद्धान्त द्वारा स्वीकार किया गया है। देवेन्द्रों और नरेन्द्रों ने इसका में अर्थ कहा है अथवा देवेन्द्रों एवं नरेन्द्रों को इसका अर्थ तत्त्वरूप से कहा गया है। यह सत्य वैमानिक देवों द्वारा समर्थित एवं आसेवित है। महान् प्रयोजन वाला है। यह मंत्र औषधि और विद्याओं की सिद्धि फ़ का कारण है-सत्य के प्रभाव से मंत्र और विद्याओं की सिद्धि होती है। यह चारण (विद्याचारण, जंघाचारण) आदि मुनिगणों की विद्याओं को सिद्ध करने वाला है। मानवगणों द्वारा वंदनीय है-स्तवनीय है, अर्थात् स्वयं सत्य तथा सत्यनिष्ठ पुरुष, मनुष्यों की प्रशंसा-स्तुति का पात्र बनता है। अमरगणों-देवसमूहों के लिए भी अर्चनीय तथा असुरकुमार आदि भवनपति देवों द्वारा भी पूजनीय होता है। अनेक प्रकार के व्रत धारण करने वाले पाखण्डी साधुओं ने भी इसे स्वीकार किया है। इस ॥ क प्रकार की महिमा से मण्डित यह सत्य लोक में सारभूत है। महासागर से भी अधिक गम्भीर है। सुमेरु पर्वत से भी अधिक स्थिर-अटल है। चन्द्रमण्डल से भी अधिक सौम्य-शान्तिदायक है। सूर्यमण्डल से भी म अधिक तेजस्वी है। शरत्-काल के आकाश तल से भी अधिक निर्मल है। गन्धमादन (गजदन्त गिरि- 5 विशेष) से भी अधिक सुगन्धित है। लोक में जो भी समस्त मंत्र हैं, वशीकरण आदि योग हैं, जप हैं, ॐ प्रज्ञप्ति प्रभृति विद्याएँ हैं, दस प्रकार के मुंभक देव हैं, धनुष आदि अस्त्र हैं, जो भी तलवार आदि शस्त्र + हैं अथवा अर्थनीति आदि लौकिक शास्त्र हैं, कलाएँ हैं, आगम आदि धर्म शास्त्र हैं, वे सभी सत्य में * प्रतिष्ठित हैं अर्थात् ये सब सत्य से ही उपलब्ध या सिद्ध होते हैं। $ 120. [1] Shri Sudharma Swami told his principal disciple, Jambu Swami, "O Jambu ! The second Samvar is true word. Truth is pure and faultless. It is sacred. It causes welfare as it is free from all disturbances. 41. It arises from good, noble thoughts, so it is said in a good dignified 46 manner. It is in the form of the best vow. It is said after right contemplation. The learned have seen it as a means of welfare for mankind. According to scholars, it is the cause of welfare. It has a stable reputation. It is uttered by the persons whose words are blessed with self-restraint. It is respected by the gods of higher heavenly abode, 卐55卐55555555555555555555555555155555555)) श्रु.२, द्वितीय अध्ययन : सत्य संवर (297) Sh.2, Second Chapter: Truth Samvar 3555555555555555 5 5555558 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002907
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages576
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_prashnavyakaran
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy