SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 370
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 听听听听听听听听听 F )) )) ) ) ) 8455555555 555 5555555558 तं सच्चं भगवं तित्थयरसुभासियं दसविहं, चोद्दसपुव्वीहिं पाहुडत्थविइयं, महरिसीण य समयप्पइण्णं, देविंदरिंदभासियत्थं, वेमाणियसाहियं, महत्थं, मंतोसहिविज्जासाहणत्यं, चारणगणसमणसिद्धविजं, मणुयगणाणं वंदणिज्जं, अमरगणाणं अच्चणिज्जं, असुरगणाण य पूयणिज्जं, अणेगपासंडिपरिग्गहियं जं तं ॥ लोगम्मि सारभूयं, गंभीरयरं महासमुद्दाओ, थिरयरगं मेरुपव्ययाओ, सोमयरगं चंदमंडलाओ, दित्तयरं ॐ सूरमंडलाओ, विमलयरं सरयणहयलाओ, सुरभियरं गंधमादणाओ, जे वि य लोगम्मि अपरिसेसा मंतजोगा + जवा य विज्जा य जंभगा य अत्थाणि य सत्थाणि य सिक्खाओ य आगमा य सव्वाइं पि ताई सच्चे । ॐ पइट्ठियाई। १२०. [१] श्री सुधर्मा स्वामी ने अपने प्रमुख शिष्य श्री जम्बू स्वामी से कहा-हे जम्बू ! यह सत्यवचन नाम का दूसरा संवर है। सत्य शुद्ध-निर्दोष, शुचि-पवित्र, शिव-समस्त प्रकार के उपद्रवों से 5 रहित, सुजात-प्रशस्त-विचारों से उत्पन्न होने के कारण सुभाषित-सुन्दर सुस्पष्ट वचन रूप है। यह उत्तम व्रतरूप है और सम्यक् विचारपूर्वक कहा गया है। इसे ज्ञानीजनों ने कल्याण के साधन के रूप में फ़ देखा है, अर्थात् ज्ञानियों की दृष्टि में सत्य कल्याण का कारण है। यह सुप्रतिष्ठित है-सुस्थिर कीर्ति वाला ॥ है, समीचीन रूप में संयमयुक्त वाणी से कहा गया है। सत्य सुरवरों-उत्तम कोटि के देवों, नरवृषभों-श्रेष्ठ ॐ मानवों, अतिशय बलधारियों एवं सुसाधुजनों द्वारा बहुमत-अतीव मान्य किया गया है। श्रेष्ठ-उत्कृष्ट 卐 5 साधुओं का धार्मिक अनुष्ठान है और तप एवं नियम से स्वीकृत किया गया है। सद्गति के पथ का , प्रदर्शक है और यह व्रत लोक में उत्तम माना गया है। म यह सत्य विद्याधरों की आकाशगामिनी विद्याओं को सिद्ध करने वाला है। स्वर्ग के मार्ग का तथा . मुक्ति के मार्ग का प्रदर्शक है। यथातथ्य अर्थात् मिथ्याभाव से रहित है, ऋजुक-सरलभाव से युक्त है, कटिलता से रहित है. विद्यमान पदार्थों का ही प्रयोजनवश कथन करने वाला है. सर्व प्रकार से शद्ध' है-असत्य या अर्द्धसत्य की मिलावट से रहित है (असत्य का सम्मिश्रण जिसमें नहीं होता वही विशुद्ध सत्य कहलाता है) सत्य ज्ञान को प्रकाशित करने वाला है, इस जीवलोक में समस्त पदार्थों का विसंवादरहित-यथार्थप्ररूपक है। यह यथार्थ होने के कारण मधुर है और मनुष्यों का बहुत-सी विभिन्न प्रकार की अवस्थाओं में आश्चर्यजनक कार्य करने वाले देवता के समान है, अर्थात् मनुष्यों पर आ पड़े ॐ घोर संकट की स्थिति में वह देवता की तरह सहायक बनकर संकट से उबारने वाला है। किसी महासमुद्र के बीच में दिशा भ्रम से ग्रस्त हो जाने के कारण जिनकी बुद्धि कार्य नहीं कर रही ऊ हो, ऐसे सैनिकों के जहाज भी सत्य के प्रभाव से ठहर जाते हैं, डूबते नहीं हैं। सत्य का ऐसा प्रभाव है कि भँवरों से यक्त जल के प्रवाह मे भी मनष्य बहते नहीं हैं, मरते नहीं हैं, किन्तु थाह पा लेते हैं। सत्य के प्रभाव से जलती हुई अग्नि के भयंकर घेरे में पड़े हुए मानव जलते नहीं हैं। सत्यनिष्ठ सरल हृदय वाले सत्य के प्रभाव से तपे-उबलते हुए तेल, राँगे, लोहे और सीसे को छू लेते हैं, हथेली पर रख लेते हैं, फिर भी जलते नहीं हैं। मनुष्य पर्वत के शिखर से गिरा दिये जाते हैं-नीचे फेंक दिये जाते हैं, फिर भी (सत्य के प्रभाव से) मरते नहीं हैं। )) 且听听听听听听听听听听听55555555 555555555555555 5听听听听听听听听听听听听听听 ) )) )) ) )) ) 5555555) 卐 श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र (296) Shri Prashna Vyakaran Sutra प्रध 555555555555555555555555555555555558 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002907
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages576
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_prashnavyakaran
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy