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Thus by following these five sentiments of the major vow of non-4 violence, the practice of vow becomes spotless and free from all faults. ! Only that monk is a real monk who practices his vow in a faultless manner. He alone attains success in his practice for salvation.
११८. एवमिणं संवरस्स दारं सम्मं संवरियं होइ सुप्पणिहियं इमेहिं पंचहिं पि कारणेहिं , मण-वयण-कायपरिरखिएहिं णिचं आमरणंतं च एस जोगो णेयब्यो धिइमया मइमया अणासवो अकलसो अच्छिद्दो असंकिलिट्ठो सुद्धो सव्वजिणमणुण्णाओ।
११८. इस प्रकार मन, वचन और काय से सुरक्षित इन पाँच भावना रूप उपायों से यह अहिंसा-संवरद्वार पालित-सुप्रणिहित होता है। अतएव धैर्यशाली और मतिमान् पुरुष को सदा , जीवनपर्यन्त सम्यक् प्रकार से इसका पालन करना चाहिए। यह अनास्रव है, अर्थात् नवीन कर्मों के आस्रव को रोकने वाला है, दीनता से रहित है, कालुष्य-मलीनता से रहित और अच्छिद्र-अनास्रवरूप ॥ है, अपरिस्रावी-कर्मरूपी जल के आगमन को अवरुद्ध करने वाला है, मानसिक संक्लेश से रहित है, शुद्ध है और सभी तीर्थंकरों द्वारा अनुज्ञात-अभिमत है। ____18. Thus non-violence, the gateway of Samvar is guarded through five methods above-mentioned, meticulously followed mentally, vocally and physically. So the intelligent steadfast person should follow them properly throughout his life. It is Anasrava, which means that it stops the inflow of Karma. It is devoid of wretchedness. It is free from polluted bent of mind. It is free from any gaps. It stops the entrance of Karma water in the self. It is free from mental disturbances. It is pure. It is the dictum of all the Tirthankars.
विवेचन : हिंसा आस्रव का कारण है तो उसकी विरोधी अहिंसा आस्रव को रोकने वाली हो, यह स्वाभाविक ही है।
अहिंसा के पालन में दो गुणों की अपेक्षा रहती है-धैर्य की और विवेक की। विवेक के अभाव में अहिंसा के वास्तविक आशय को समझा नहीं जा सकता और वास्तविक आशय को समझे बिना उसका आचरण नहीं किया जा सकता है। विवेक विद्यमान हो और अहिंसा के स्वरूप को वास्तविक रूप में समझ भी लिया जाए, मगर साधक में यदि धैर्य न हो तो भी उसका पालन होना कठिन है। अहिंसा के उपासक को व्यवहार में अनेक कठिनाइयाँ आती हैं, संकट भी झेलने पड़ते हैं, ऐसे प्रसंगों पर धीरज ही उसे अपने व्रत में अडिग रख सकता है। अतएव पाठ में 'धिइमया मइमया' इन दो पदों का प्रयोग किया गया है।
Elaboration-Violence is the cause of inflow of Karma. So it is natural that non-violence stops the inflow.
Two qualities are necessary for the practice of non-violence in life, $ namely perseverance and sense of discrimination. In the absence of i
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श्रु.२, प्रथम अध्ययन : अहिंसा संवर
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Sh.2, First Chapter: Non-Violence Samvar
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