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ॐ गवेषणा करनी चाहिए और न यह तीनों गौरव-दरिद्रता और भिखारी की तरह दीनता दिखाकर भिक्षा के
की गवेषणा करनी चाहिए। ज इसी प्रकार मित्रता प्रकट करके, प्रार्थना करके और सेवा करके भी अथवा मित्रता प्रदर्शन, प्रार्थना ॥
और सेवा तीनों एक साथ करके भी भिक्षा की गवेषणा नहीं करनी चाहिए। किन्तु अपने स्वजन, कुल, ॐ जाति आदि का परिचय न देते हुए, अज्ञात रूप से आहार में आसक्ति-मूर्छा से रहित होकर, आहार में
और आहारदाता के प्रति द्वेष न करते हुए, अदीन-दैन्यभाव से मुक्त रहकर, भोजनादि न मिलने पर * मन में उदासी न लाते हुए, अपने प्रति हीनता-करुणता का भाव न रखते हुए-दयनीय न होकर, फ़ विषादरहित वचन-चेष्टा रखकर, निरन्तर मन-वचन-काय को धर्मध्यान में लगाते हुए-प्राप्त संयमयोग
में उद्यम, अप्राप्त संयम योगों की प्राप्ति में चेष्टा, विनय के आचरण और क्षमादि के गुणों के योग से युक्त होकर साध को भिक्षा की गवेषणा में तत्पर होना चाहिए।
विवेचन : आहारादि-ग्रहण के साथ अनेकानेक विधिनिषेध जुड़े हुए हैं। उन सबका अभिप्राय यही है कि ॐ साधु ने जिन महाव्रतों को अंगीकार किया है, उनका भलीभाँति रक्षण एवं पालन करते हुए ही उसे आहारादि म प्राप्त करना चाहिए। आहारादि के लिए उसे संयमविरुद्ध कोई क्रिया नहीं करनी चाहिए। इस प्रकार शरीर,
आहार आदि के प्रति ममत्वविहीन होकर सब दोषों से बचकर भिक्षा की गवेषणा करने वाला मुनि ही अहिंसा ॐ भगवती की विधिवत् आराधना करने में समर्थ होता है।
111. A true monk seeks faultless food. He does not disgrace the householder. He does not dishonour others or talk ill of others on the basis of caste. He does not condemn the donor in front of others by pointing out the faults of the donor, or of the food given. The alms should be collected without condemning, dishonouring or disgracing the giver.
Similarly a monk should not collect alms by frightening, threatening or i slapping the donor. He should not collect alms in a fit of ego of prosperity, 4 $i comforts and enjoyments. He should not collect it by expressing his 51
pitiable condition, or by deceit or by expressing his anger. He should not collect alms by exhibiting his status, anger or wretched state.
Similarly one should not seek bhiksha by exhibiting friendship, by si requesting for it or by serving others. He should seek it without mentioning his relatives, family or caste. He should collect it without
any attachment in food. He should have no hatred for the food or for the $1 donor. He should be free from feeling of wretchedness. He should not feel 55
sad if he finds no food. He should not have any disgust or pity towards
his own self. He should be free from disgust. He should engage mind, i speech and body continuously in sacred thoughts. He should make
sincere efforts towards gratification of his self-restraint and to attain the
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| श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
(282)
Shri Prashna Vyakaran Sutra
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