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इसी प्रकार चारणों और विद्याधरों ने, एक-एक उपवास करने वालों चतुर्थभक्तिकों से लेकर दो, तीन, चार, पाँच दिनों, इसी प्रकार एक मास, दो मास, तीन मास, चार मास, पाँच मास एवं छह मास तक का अनशन-उपवास करने वाले तपस्वियों ने, इसी प्रकार उत्क्षिप्तचरक, निक्षिप्तचरक, अन्त प्रान्तचरक, रूक्षचरक, समुदानचरक, अन्नग्लायक, मौनचरक, संसृष्टकल्पिक, तज्जातसंसृष्टकल्पिक, उपनिधिक, शुद्धैषणिक, संख्यादत्तिक, दृष्टलाभिक, अदृष्टलाभिक, पृष्ठलाभिक, आचाम्लक, पुरिमार्धिक, एकाशनिक, निर्विकृतिक, भिन्नपिण्डपातिक, परिमितपिण्डपातिक, अन्ताहारी, प्रान्ताहारी, अरसाहारी, विरसाहारी, रूक्षाहारी, तुच्छाहारी, अन्तजीवी, प्रान्तजीवी, रूक्षजीवी, तुच्छजीवी, उपशान्तजीवी, प्रशान्तजीवी, विविक्तजीवी साधकों ने एवं दूध, मधु और घत का यावज्जीवन त्याग करने वालों ने, मद्य
और माँस से रहित आहार करने वालों ने, कायोत्सर्ग करके एक स्थान पर स्थित रहने का अभिग्रह करने वालों ने, प्रतिमा स्थायिकों ने, स्थानोत्कटिकों ने, वीरासनिकों ने, नैषधिकों ने, दण्डायतिकों ने, लगण्डशायिकों ने, एकपार्श्वकों ने, आतापकों ने, अपाव्रतों ने, अनिष्ठीवकों ने, अकंडूयकों ने, धूतकेशश्मश्रु लोम-नख अर्थात् सिर के बाल, दाढ़ी, मूंछ और नखों का संस्कार करने का त्याग करने वालों ने, सम्पूर्ण शरीर के प्रक्षालन आदि संस्कार के त्यागियों ने, श्रुतधरों के द्वारा तत्त्वार्थ को अवगत करने वाली बुद्धि के धारक महापुरुषों ने (अहिंसा भगवती का) सम्यक् प्रकार से आचरण किया है।
(इनके अतिरिक्त) आशीविष सर्प के समान उग्र तेज से सम्पन्न महापुरुषों ने, वस्तुतत्त्व का निश्चय करके पुरुषार्थ में पूर्ण कार्य करने वाली बुद्धि से सम्पन्न प्रज्ञापुरुषों ने, नित्य स्वाध्याय और चित्तवृत्तिनिरोध रूप ध्यान करने वाले तथा धर्मध्यान में निरन्तर चित्त को लीन रखने वाले पुरुषों ने, पाँच महाव्रतरूप चारित्र से युक्त तथा पाँच समितियों से सम्पन्न, पापों का शमन करने वाले, षट्जीवनिकायरूप जगत् के वत्सल, निरन्तर अप्रमादी रहकर विचरण करने वाले महात्माओं ने तथा अन्य विवेकविभूषित सत्पुरुषों ने अहिंसा भगवती की आराधना की है। ___109. Tirthankars, the omniscients who establish the order, whose knowledge and perception was unlimited, who had immense compassion for all the living beings in the world and who are honoured by the living beings of all the three worlds have seen it (Ahimsa) clearly and fully through their perfect knowledge and perfect perception.
Prominent persons having transcendental knowledge have specially known it. Those who had mental knowledge of simple order (rijumati) also saw it and judged it. The possessors of mental knowledge of high order (vipulmati) had known it quite clearly. Those who had knowledge of fourteen Purvas studied it. Those who had fluid power, practiced it throughout their life. Similarly those who had sensory knowledge. scriptural knowledge, transcendental knowledge, mental knowledge, perfect knowledge, who had unique qualities such as curing others with
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श्रु.२, प्रथम अध्ययन : अहिंसा संवर
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Sh.2, First Chapter: Non-Violence Samvar
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