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________________ फफफफफफफफफफफफफफ 5 ओहिजिहिं विष्णाया, उज्जुमईहिं विदिट्ठा, विउलमईहिं विदिआ, पुव्वधरेहिं अहीया, वेउव्वीहिं फ्र पतिष्णा, आभिणिबोहियणाणीहिं सुयणाणीहिं ओहिजाणीहिं मणपज्जवणाणीहिं केवलणाणीहिं 卐 आमोसहिपत्तेहिं खेलोसहिपत्तेर्हि जल्लोसहिपत्तेहिं विप्पोसहिपत्तेर्हि सव्वोसहिपत्तेहिं बीयबुद्धीहिं कुट्ठबुद्धीहिं पाणुसारीहिं संभिण्णसोएहिं सुयधरेहिं मणबलिएहिं वयबलिएहिं कायबलिएहिं णाणबलिएहिं दंसणबलिएहिं चरित्तबलिएहिं खीरासवेहिं महुआसवेहिं सप्पियासवेहिं अक्खीणमहाणसिएहिं चारणेहिं विज्जाहरेहिं । चउत्थभत्तिएहिं एवं जाव छम्मासभत्तिएहिं उक्खित्तचरएहिं णिक्खित्तचरएहिं अंतचरएहिं पंतचरएहिं 5 लूहचरएहिं समुयाणचरएहिं अण्णइलाएहिं मोणचरएहिं संसट्टकप्पिएहिं तज्जायसंसकप्पिएहिं उवणिएहिं सुद्धेणिएहिं संखादत्तिएहिं दिट्ठलाभिएहिं पुट्ठलाभिएहिं आयंबिलिएहिं पुरिमड्डिएहिं एक्कासणिएहिं व्विहिं भिण्णपिंडवाइएहिं परिमियपिंडवाइएहिं अंताहारेहिं पंताहारेहिं अरसाहारेहिं विरसाहारेहिं लूहाहारेहिं तुच्छाहारेहिं अंतजीवीहिं पंतजीवीहिं लूहजीविहिं तुच्छजीवीहिं उवसंतजीवीहिं पसंतजीवीहिं विवित्तजीवीहिं अखीरमहुसप्पिएहिं अमज्जमंसासिएहिं टाणाइएहिं पडिमंटाईहिं ठाणुक्कडिएहिं वीरासणिएहिं सज्जिएहिं डंडाइएहिं लगंडसाईहिं एगपासगेहिं आयावएहिं अप्पावएहिं अणिट्ठमएहिं अकंडूयएहिंधुयकेसमंसुलोमणएहिं सव्वगायपडिकम्मविप्पमुक्केहिं समणुचिण्णा, सुयहरविइयत्थकायबुद्धीहिं । फ्र धीरमइबुद्धिो य जे ते आसीविसउग्गतेयकप्पा णिच्छयववसायपज्जत्तकयमईया णिच्चं फ्र सज्झायज्झाणअणुबद्धधम्मज्झाणा पंचमहव्वयचरित्तजुत्ता समिया समिइसु, समियपावा छव्विहजगवच्छला 5 णिच्चमप्पमत्ता एएहिं अण्णेहि य जा सा अणुपालिय भगवई । फ्र 卐 १०९. यह भगवती अहिंसा वह है जिसे अपरिमित - अनन्त केवलज्ञान-दर्शन को धारण करने वाले, शील गुण, विनय, तप और संयम के नायक - मार्गदर्शक धर्म तीर्थ की संस्थापना करने वाले, जगत् के समस्त जीवों के प्रति असीम वात्सल्य धारण करने वाले, तीन लोकों में पूजनीय जिनवरों 5 (जिनचन्द्रों) ने अपने केवलज्ञान-दर्शन द्वारा सम्यक् रूप में देखा है। श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र विशिष्ट अवधिज्ञानियों ने इसे विशेष रूप से जाना है। ऋजुमति-मनः पर्यवज्ञानियों ने विशेष रूप में देखा-परखा है । विपुलमति- मनःपर्यायज्ञानियों ने भलीभाँति ज्ञात किया है। चतुर्दश पूर्वश्रुत के धारक फ्र मुनियों ने इसका अध्ययन किया है। वैक्रियलब्धि के धारकों ने इसका आजीवन पालन किया है। इसी 5 प्रकार मतिज्ञानियों ने, श्रुतज्ञानियों ने अवधिज्ञानियों ने, मनः पर्यवज्ञानियों ने, केवलज्ञानियों ने, आमर्षौषधिलब्धि के धारकों, श्लेष्मौषधिलब्धिधारकों, जल्लौषधिलब्धिधारकों, विप्रुडौषधिलब्धिधारकों, सर्वौषधिलब्धिप्राप्त, बीजबुद्धि-कोष्ठबुद्धि - पदानुसारिबुद्धि-लब्धि के धारकों, संभिन्नश्रोतस्लब्धि के धारकों, श्रुतधरों, मनोबली, वचनबली और कायबली मुनियों, ज्ञानबली, दर्शनबली तथा चारित्रबली महापुरुषों ने, मध्वास्रवलब्धिधारी, सर्पिरास्रवलब्धिधारी तथा अक्षीणमहानसलब्धि के धारकों ने इसकी आराधना की है। (264) Jain Education International 卐 For Private & Personal Use Only Shri Prashna Vyakaran Sutra 2559555555559555595555555 5 55 5552 फ्र www.jainelibrary.org
SR No.002907
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages576
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_prashnavyakaran
File Size19 MB
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