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108. Non-violence has unique grandeur. It provides support (to all the living beings) who are afraid in the world. For birds it is like flying in the sky. (It provides them independence). It provides peace to the troubled just as water gives relief to the person in sad state due to thirst. It is like food for the hungry (It provides them satisfaction and strength). It is like a ship to the persons drowning in the ocean (It saves them). It is the y place of safety for living beings just as a shed is the place of safely for animals. Just as medicine provides relief to the diseased, it provides improvement in health. It provides protection just as the travellers in the company of a caravan feel protected while passing through dreadful forest.
(Is non-violence, in reality similar to water, food, medicine, a caravan in travels?) In fact it is much more helpful than these above mentioned: One saves himself immediately when he gets the support of non-violence. It causes welfare of all the living beings-earth-bodied, water-bodied, fire-bodied, air-bodied, plant-bodied living beings, seeds, greenery, living beings moving in water, on land, in sky, the mobile and the immobile living beings.
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विवेचन : जो प्राणी भय से ग्रस्त है, जिसके सिर परं चारों ओर से भय मंडरा रहा हो, उसे यदि निर्भयता 5 का स्थान - शरण मिल जाये तो कितनी प्रसन्नता होती है ! अहिंसा समस्त प्राणियों के लिए इसी प्रकार 卐 शरणप्रदात्री है।
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खुले आकाश में विचरण करने वाले पक्षी को धरती पर अनेक संकट आने की आशंका बनी रहती है। वह थोड़ी-सी भी आपत्ति की संभावना होते ही धरती छोड़कर आकाश में उड़ने लगता है। आकाश उसके लिए फ अभय का तथा स्वतंत्रता का स्थल है। अहिंसा भी अभय का स्थान है। प्यास से पीड़ित को पानी और भूखे को 5 भोजन मिल जाये तो उसकी पीड़ा एवं पीड़ाजनित व्याकुलता मिट जाती है, उसे शान्ति प्राप्त होती है, उसी प्रकार अहिंसा परम शान्तिदायिनी है। जैसे समुद्र में डूबते के प्राणों पर संकट आ जाता है तब जहाज का सहारा फ मिलता है और उसके प्राणों की रक्षा हो जाती है, उसी प्रकार संसार - समुद्र में डूबने वाले प्राणियों की रक्षा करने वाली, उबारने वाली अहिंसा है। चौपाये जैसे अपने वाड़े (पशुशाला) में पहुँचकर निर्भयता का अनुभव करते हैं। इसी प्रकार भगवती अहिंसा भी अभय का स्थान है। जैसे सुनसान तथा हिंसक जन्तुओं से व्याप्त भयानक अटवी में एकाकी गमन करना संकटमय होता है। सार्थ (समूह) के साथ जाने पर भय नहीं रहता, इसी प्रकार जहाँ अहिंसा है, वहाँ भय नहीं रहता ।
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इन उपमाओं के निरूपण के पश्चात् सूत्रकार ने स्पष्ट किया है कि अहिंसा के लिए ये उपमाएँ पूर्णोपमाएँ नहीं 5 हैं। तात्पर्य यह है कि दुःख या भय का प्रतीकार करने वाली इन वस्तुओं से न तो सदा के लिए दुःख दूर होता है और न परिपूर्ण रूप से रक्षा होती है। कभी-कभी तो भोजन, औषध आदि उल्टे दुःख के कारण भी बन जाते हैं।
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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
Shri Prashna Vyakaran Sutra
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