________________
))
संवरद्वार GATEWAYS OF SAMVAR
)))
))))
))
)
卐 प्रथम श्रुत स्कंन्ध में पाँच आश्रवों का विस्तृत विवेचन किया गया है। आश्रव का विपरीत संवर है। संवर
का महत्त्व जाने बिना आश्रवों से विरक्ति नहीं हो सकती। इसलिये यहाँ सर्वप्रथम पाँच संवरों का दिग्दर्शन 卐 निनोक्त पाठों द्वारा कराया गया है। $ Five Asravas (causes of inflow) have been discussed in detail in the
first section (Shrutskandh). Samvar (blockage of inflow) is opposite of 45 Asrava. Without knowing the importance of Samvar apathy for Asravas 41 cannot be attained. That is why introduction of five samvars is given
hereunder as the starting point. भूमिका INTRODUCTION १०३.. जंबू ! एत्तो संवरदाराई, पंच वोच्छामि आणुपुबीए।
जह भणियाणि भगवया, सव्वदुक्खविमोक्खणट्ठाए॥१॥ १०३. श्री सुधर्मा स्वामी कहते हैं-हे आयुष्मान् जम्बू ! अब मैं उसी प्रकार पाँच संवरद्वारों का के अनुक्रम से कथन करूँगा जिस प्रकार भगवान ने सर्वदुःखों से मुक्ति पाने के लिए कहे हैं ॥१॥
103. Shri Sudharma Swami states, 'O Jambu ! I shall now tell you five Hi gateways of Samvar (stoppage of inflow of Karma) in the very order as they have been narrated by Bhagavan Mahavir for salvation from all miseries (1). १०४. पढम होइ अहिंसा, बिइयं सच्चवयणं ति पण्णत्तं।
दत्तमणुण्णाय संवरो य, बंभचेर-मपरिग्गहत्तं च॥ २॥ १०४. (इन संवरद्वारों में) प्रथम द्वार अहिंसा है, दूसरा सत्यवचन है, तीसरा स्वामी की आज्ञा से है दिया हुआ और अनुमति प्रदत्त (अदत्तादानविरमणद्वार) है, चौथा ब्रह्मचर्य और पाँचवा परिग्रह त्याग के रूप अपरिग्रह द्वार है॥ २ ॥
104. (Out of the gateways of Samvar), the first is Ahimsa (nonviolence). The second is truth. The third is to take only that which is given with the order and consent of its master. The fourth is chastity
(celibacy) and the fifth is non-attachment (aparigraha) or discarding the $ feeling of attachment (2). १०५. तत्थ पढमं अहिंसा, तस-थावर-सव्वभूय-खेमकरी।
तीसे सभावणाओ, किंचि वोच्छं गुणुद्देसं ॥३॥
)))))
355555555555
श्रु.२, संवरद्वार
(247)
Sh.2, Gateways of Samvar
牙牙牙牙牙%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%
%
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org