SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 305
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 8555555555555555555555555555555555555g परिग्रह के लिए विविध कलाएँ सीखते हैं LEARNING OF VARIOUS ARTS FOR PARIGREH ९६. परिग्गहस्स य अट्ठाए सिप्पसयं सिक्खए बहुजणो कलाओ य बावत्तरि सुणिउणाओ लेहाइयाओ सउणरुयावसाणाओ गणियप्पहाणाओ, चउसद्धिं च महिलागुणे रइजणणे, सिप्पसेवं, असि-मसि-किसिवाणिज्जं, ववहारं अत्थसत्थईसत्थच्छरुप्पगयं, विविहाओ य जोगजुंजणाओ, अण्णेसु एवमाइएसु बहुसु कारणसएसु जावज्जीवं णडिज्जए संचिणंति मंदबुद्धी। ___ परिग्गहस्सेव य अट्ठाए करंति पाणाण-वहकरणं अलिय-णियडिसाइसंपओगे परदव्वाभिज्जा सपरदारअभिगमणासेवणाए आयासविसूरणं कलहभंडणवेराणि य अवमाणणविमाणणाओ इच्छामहिच्छप्पिवाससययतिसिया तण्हगेहिलोहघत्था अत्ताणा अणिग्गहिया करेंति कोहमाणमायालोहे। ___ अकित्तणिज्जे परिग्गहे चेव होंति णियमा सल्ला दंडा य गारवा व कसाया सण्णा य कामगुण-अण्हगा य इंदियलेस्साओ सयणसंपओगा सचित्ताचित्तमीसगाई दव्वाइं अणंतगाइं इच्छंति परिघेत्तुं। ___सदेवमणुयासुरम्मि लोए लोहपरिग्गहो जिणवरेहिं भणिओ णत्थि एरिसो पासो पडिबंधो अस्थि सब्बजीवाणं सबलोए। ९६. परिग्रह के लिए बहुत लोग सैकड़ों प्रकार के शिल्प या हुनर तथा उच्च श्रेणी की-निपुणता उत्पन्न करने वाले लेखन से लेकर पक्षियों की बोली तक की, गणित आदि बहत्तर कलाएँ सीखते हैं तथा नारियाँ रति उत्पन्न करने वाले चौंसठ महिलागुणों-कलाओं को सीखती हैं। कोई शिल्प द्वारा बड़े लोगों की सेवा करते हैं। कोई असिकर्म-तलवार आदि शस्त्रों को चलाने का अभ्यास करते हैं, कोई मसिकर्मलिपि आदि लिखने की शिक्षा लेते हैं, कोई कृषि कर्म, खेती करते हैं, कोई वाणिज्य-व्यापार सीखते हैं, है कोई व्यवहार अर्थात् विवाद के निपटारे की, न्यायशास्त्र की शिक्षा लेते हैं। कोई अर्थशास्त्र-राजनीति आदि की, कोई धनुर्वेद आदि शास्त्र एवं छुरी आदि शस्त्रों को पकड़ने और चलाने की शिक्षा लेते हैं। कोई अनेक प्रकार के वशीकरण आदि योगों की शिक्षा ग्रहण करते हैं। इसी प्रकार परिग्रह के सैकड़ों कारणों-उपायों में प्रवृत्त होकर मनुष्य आजीवन विडम्बना पाते हैं। परिग्रह के गुलाम बनकर नाचते हैं वे मन्दबुद्धि परिग्रह का संचय करने में लगे रहते हैं। परिग्रह के लिए लोग प्राणियों की हिंसा करते हैं, झूठ बोलते हैं, दूसरों को ठगते हैं, निकृष्ट घटिया वस्तु की मिलावट करके उत्कृष्ट दिखलाते हैं और पराये द्रव्य में लालच करते हैं। स्वदार-गमन में शारीरिक एवं मानसिक खेद का तथा परस्त्री की प्राप्ति न होने पर मानसिक पीड़ा का अनुभव करते हैं। परिग्रह के लिए कलह-विवाद लड़ाई तथा वैर-विरोध करते हैं, अपमान तथा यातनाएँ सहन करते हैं और चक्रवर्ती आदि के समान बड़ी-बड़ी इच्छाओं की पिपासा से निरन्तर प्यासे बने रहते हैं। तृष्णा प्राप्त-अप्राप्त द्रव्य की प्राप्ति की लालसा पदार्थों सम्बन्धी गृद्धि-आसक्ति तथा लोभ में ग्रस्त रहते हैं। वे त्राणहीन अपनी इन्द्रियों तथा मन पर किसी प्रकार के नियंत्रण नहीं करके क्रोध, मान, माया और लोभ में रचे-पचे रहते हैं। इस सर्वत्र निन्दनीय परिग्रह में ही तीनों शल्य-(१) मायाशल्य, (२) मिथ्यात्वशल्य, और (३) निदानशल्य पैदा होते हैं, इसी में तीन दण्ड-(१) मनोदण्ड, (२) वचनदण्ड, और (३) कायदण्ड नाना श्रु.१, पंचम अध्ययन : परिग्रह आश्रव (239) Sh.1, Fifth Chapter : Attachment Aasrava 卐 )))) )5555555555555555558 www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International
SR No.002907
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages576
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_prashnavyakaran
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy