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95555555555555555555555555556 चित्र-परिचय 13
Illustration No. 13
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परिग्रह के जाल में फँसे देवगण, चक्रवर्ती एवं वासुदेव
देवों का परिग्रह-महान ऋद्धि सम्पन्न इन्द्र और सामानिक देव भी अपनी-अपनी परिषद् के साथ परिग्रह में अत्यन्त आसक्त रहते हैं। वे देव-भवन, वाहन, यान, विमान, शयन, आसन और विविध प्रकार के वस्त्राभूषण, उत्तमकोटि के शस्त्र, पाँच प्रकार के वर्ण वाली दिव्य मणियों के समूह
और इच्छानुसार विविध प्रकार के मोहक रूप बनाने वाली अप्सराओं, अपने अभियोगिक देवों आदि पर ममत्व भाव रखते हैं।
चक्रवर्ती का परिग्रह-चारों दिशाओं और भरत क्षेत्र के छह खण्डों पर अधिकार रखने वाले चक्रवर्ती भी अपने चौदह रत्नों और नव निधियों पर ममत्व रखते हैं और परिग्रह में आसक्त रहते हैं।
वासुदेव का परिग्रह-भरत क्षेत्र के तीन खण्डों पर अधिकार रखने वाले वासुदेव भी अपने दिव्य चक्ररत्न, धनुष, गदा, शंख, खड्, मणि, जयमाला आदि रत्नों पर ममत्व रखते हैं और परिग्रह में मूर्छा भाव रखते हैं।
-सूत्र 95, पृ. 230
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GODS, CHAKRAVARTIS AND VASUDEVS ENTRAPPED IN PARIGRAHA Covetousness of gods - Glorious Indra and other Samanik gods along with their assembly are intensely attached to their possessions. They are very fond of their mansions, vehicles, celestial-vehicles, beds, seats, variety of dresses and ornaments, special weapons, heaps of multi-coloured gems, goddesses capable of changing appearance at will, and attendant gods.
Possessions of Chakravartis - A chakravarti, the lord of four directions and six divisions of Bharat Area is also very fond of his fourteen jewels and nine treasures. He too is intensely attached to his possessions.
Possessions of Vasudevs - A Vasudev, the lord of three divisions of Bharat area, is also attached to his Divine Disc (Chakra Ratna), bow, mace, conch-shell, sword, gems and garland of victory. He too is intensely attached to his possessions.
- Sutra-95, pagé 230
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