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________________ 555555555555555555555555555555555559 १५. उवकरणं-जीवनोपयोगी साधन-सामग्री उपकरण है। आवश्यकता का विचार न करके अनापसनाप साधन-सामग्री एकत्र करते रहना। १६. संरक्खणा य-प्राप्त पदार्थों का आसक्तिपूर्वक संरक्षण करना। १७. भारो-परिग्रह जीवन के लिए सबसे बड़ा भारभूत है। १८. संपाउप्पायओ-परिग्रह नाना प्रकार के उपद्रवों तथा संकल्पों-विकल्पों का उत्पादक है। १९. कलिकरंडो-कलह का पिटारा। कलह, युद्ध, वैर, विरोध, संघर्ष आदि का प्रमुख कारण परिग्रह है। अतएव इसे 'कलह का पिटारा' नाम दिया गया है। २०. पवित्थरो-धन-धान्य आदि का विस्तार । व्यापार-धन्धा आदि का चारों तरफ फैलाव करना परिग्रह का रूप है। २१. अणत्थो-परिग्रह नानाविध अनर्थों वध-बन्धनादि दुष्परिणामों अथवा अनर्थों का मूल है। २२. संथवो-संस्तव का अर्थ है परिचय, बारम्बार निकट का सम्बन्ध। संस्तव मोह एवं आसक्ति को बढ़ाता है। २३. अगुत्ति-अपनी इच्छाओं या कामनाओं का गोपन न करना, उन पर नियन्त्रण न रखकर स्वच्छन्द छोड़ देना। _ 'अगुप्ति' के स्थान पर कहीं 'अकीर्ति' नाम उपलब्ध होता है। परिग्रह अपकीर्ति-अपयश बदनामी का कारण बनता है। २४. आयासो-आयास का अर्थ है-खेद या प्रयास। परिग्रह जुटाने के लिए मानसिक और शारीरिक खेद होता है, प्रयास करना पड़ता है। अतः इसे आयास कहा जाता है। २५. अविओगो-विभिन्न पदार्थों के रूप में-धन, मकान या दुकान आदि के रूप में जो परिग्रह एकत्र किया है, उसे बिछुड़ने न देना। चमड़ी चली जाये पर दमड़ी न जाये, ऐसी मनोवृत्ति। २६. अमुत्ती-मुक्ति अर्थात् निर्लोभता। उसका न होना अर्थात् लोभ की वृत्ति होना। यह मानसिक भाव परिग्रह है। २७. तण्हा-तृष्णा का सामान्य अर्थ है-अप्राप्त पदार्थों की लालसा और प्राप्त वस्तुओं की वृद्धि की अभिलाषा। तृष्णा ही परिग्रह का मूल है। २८. अणत्थओ-परिग्रह का एक नाम 'अनर्थ' पहले बताया जा चुका है। वहाँ अनर्थ का आशय उपद्रव या दुष्परिणाम से था। यहाँ 'अनर्थक' का अर्थ 'निरर्थक' है। पारमार्थिक हित और सुख के लिए परिग्रह निरर्थक-निरुपयोगी है। अथवा जो जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक न हो उसका संग्रह करना निरर्थक होता है। २९. आसत्ती-गहरी ममता, मूर्छा, गृद्धि-ये सभी परिग्रह के रूप हैं। श्रु.१, पंचम अध्ययन : परिग्रह आश्रय (229) Sh.1, Fifth Chapter: Attachment Aasrava F听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002907
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages576
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_prashnavyakaran
File Size19 MB
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