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________________ 鹅步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步牙牙%%% B555555555555555555555555555555555555)))))))55555R परिग्रह के गुणनिष्पन्न नाम SYNONYMS OF PARIGRAHA ९४. तस्स य णामाणि गोण्णाणि होति तीसं, तं जहा-१. परिग्गहो, २. संचयो, ३. चयो, ४. उवचयो, ५. णिहाणं, ६. संभारो, ७. संकरो, ८. आयरो, ९. पिंडो, १०. दव्वसारो, ११. तहा महिच्छा, १२. पडिबंधो, १३. लोहप्पा, १४. महद्दी, १५. उवकरणं, १६. संरक्खणा य, १७. भारो, १८. संपाउप्पायओ, १९. कलिकरंडो, २०. पवित्थरो, २१. अणत्थो, २२. संथवो, २३. अगुत्ति, २४. आयासो, २५. अविओगो, २६. अमुत्ती, २७. तण्हा, २८. अणत्थओ, २९. आसत्ती, ३०. असंतोसो त्ति वि य, तस्स एयाणि एवमाईणि णामधिज्जाणि होति तीसं। ९४. उस परिग्रह नामक अधर्म के गुणनिष्पन्न अर्थात् उसके गुण-स्वरूप को अथवा परिग्रह के व्यापक रूप को प्रकट करने वाले तीस नाम हैं। वे नाम इस प्रकार हैं १. परिग्गहो-शरीर, धन, धान्य आदि पदार्थों को ममत्व बुद्धि से ग्रहण करना। २. संचयो-किसी भी वस्तु को अधिक मात्रा में संग्रह करना। ३. चयो- भविष्य में मिले या नहीं, इस आशंका से वस्तुओं को एकत्र करना। ४. उपचयो-प्राप्त पदार्थों की वृद्धि करना। ५. णिहाणं-धन को भूमि में गाड़कर रखना, तिजोरी में रखना या बैंक में जमा करवाकर रखना, दबाकर-छुपाकर रख लेना। ६. संभारो-धान्य वस्त्र आदि वस्तुओं को अधिक मात्रा में भरकर रखना। ७. संकरो-भिन्न-भिन्न प्रकार के पदार्थों को मिलाकर रखना। यहाँ इसका विशेष अभिप्राय है-कोई बहुमूल्य वस्तु को जल्दी जान न सके और ग्रहण न कर सके। कीमती मूल्यवान पदार्थों में अल्पमूल्य वस्तु मिलाकर रखना। ८. आयरो-पर-पदार्थों में आदरबुद्धि रखना, शरीर, धन आदि को अत्यन्त प्रीतिभाव से सँभालना आदि। ९. पिंडो-किसी पदार्थ का या विभिन्न पदार्थों का ढेर करना, उन्हें लोभवश एकत्रित करना। १०. दव्वसारो-द्रव्य अर्थात् धन को ही सारभूत समझना। धन को प्राणों से भी अधिक मानना। ११. महिच्छा-असीम इच्छा या असीम इच्छा का कारण। १२. पडिबंधो-किसी पदार्थ के साथ बँध जाना। स्त्री, धन आदि के मोह में जकड़ जाना, उसे छोड़ना चाहकर भी छोड़ न पाना भावनात्मक प्रतिबन्ध है। १३. लोहप्पा-लोभ ही जिसका स्वभाव है। १४. महद्दी-बड़ी-बड़ी आकांक्षा करना अथवा याचना करना। श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र (228) Shri Prashna Vyakaran Sutra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002907
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages576
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_prashnavyakaran
File Size19 MB
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