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consequences of his activities. So he is called saturated in adverse
5 sensual desires. He cares a fig for his honour, family and conduct.
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In the aphorism there is the phrase 'Visaya Visassa Udeerayesu'. It
means that sexual desire increases when one sees a women-the very cause of the poison of sex. Just as the very sight, contact or touch of a woman creates the amorous sexual feeling in men. Similary the sight contact and the like of men creates the desire for amorous activities in women. Both men and women are the cause of increase of amorous feeling among each other. The inner cause is the effect of the deluding Karma while the external cause is the physical body of men and women. The appearance of external cause is the source for the rising effect of deluding Karma. There are four causes for the appearance of the desire for mating. They are-(1) rich diet that energises the senses, (2) the फ memory of marital activities of the past, ( 3 ) engaging in illicit contact, 5 and (4) the effect of deluding Karma.
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९१. मेहुणमूलं य सुब्बए तत्थ तत्थ वत्तपुव्वा संगामा जणक्खयकरा सीयाए, दोवईए कए, 5 रुप्पिणीए, पउमावईए, ताराए, कंचणाए, रत्तसुभद्दाए, अहिल्लियाए, सुवण्णगुलियाए, किण्णरीए, सुरूवविज्जुमईए, रोहिणीए य, अण्णेसु य एवमाइएसु बहवे महिलाकएसु सुव्वंति अइक्कंता संगामा 5 गामधम्ममूला अबंभसेविणो । इहलोए ताव णट्ठा, परलोए वि य णट्ठा ।
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अब्रह्मचर्य का दुष्परिणाम BAD RESULTS OF NON CELEBACY
यहां सूत्रकार ने बताया है कि अब्रह्माचरण का कितना भंयकर फल प्राप्त होता है।
महया मोहतिमिसंधयारे घोरे तसथावरसुहुमबायरेसु पज्जत्तमपज्जत्त-साहारणसरीरपत्तेयसरीरेसु य अंडय - पोयय - जराउय - रसय - संसेइम - सम्मुच्छिम - उब्भिय - उववाइएसु य णरय - तिरिय- देव - माणुसेसु जरामरणरोगसोगबहुले पलिओवमसागरोवमाई अणाईयं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंत - संसार - कंतारं अणुपरियट्टति जीवा मोहवससण्णिविट्ठा ।
९१. मैथुन सेवन के निमित्त विभिन्न ग्रन्थों में सीता के लिए, द्रौपदी के लिए, रुक्मिणी के लिए, पद्मावती के लिए, तारा के लिए, कांचना के लिए, रक्तसुभद्रा के लिए, अहिल्या के लिए, स्वर्णगुटिका के लिए, किन्नरी के लिए, सुरूपविद्युन्मती के लिए और रोहिणी के लिए अतीत काल में अनेक मनुष्यों का
संहार करने वाले संग्राम होने के वर्णन सुने जाते हैं, इन्द्रियों की विषयासक्ति अर्थात् मैथुन सेवन के
कारण ही ये संग्राम हुए हैं। इस प्रकार अन्य स्त्रियों के निमित्त भी संग्राम हुये हैं जो अब्रह्म मूलक हैं। अब्रह्म का सेवन करने वाले इस लोक में तो नष्ट होते ही हैं, वे परलोक में भी नष्ट होते हैं।
श्रु. १, चतुर्थ अध्ययन : अब्रह्म आश्रव
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(219) Sh.1, Fourth Chapter: Non-Celibacy Aasrava
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