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Even those who are highly respectable and are meticulously following 41 their vows bring dishonour due to it.
Persons suffering from fever, leprosy and other suchlike diseases 4 aggravate their suffering by engaging in sex. Non-celibacy increases such diseases.
Persons attached to women of others spoil their present life and also $ the succeeding life. It is difficult for them to follow the religious order in the present life and the life to follow.
Similarly, the persons who are in search of women of others (for illicit activities) are beaten, chained and put in prison when they are caught. Thus these persons whose intellect is adversely affected by delusion or by the affect of deluding Karma, are in the end re-born in low category of state of existence.
विवेचन : मानव के मन में जब तीव्र मैथुनसंज्ञा-कामवासना उभरती है तब उसकी मति विपरीतगामी हो जाती है और उसका विवेक-कर्त्तव्य-अकर्त्तव्यबोध विलीन हो जाता है। वह भविष्य में होने वाले भयानक
परिणामों का सम्यक् विचार करने में असमर्थ बन जाता है। इसी कारण उसे विषयान्ध कहा जाता है। उस समय 卐 वह अपने यश, कुल, शील आदि का तनिक भी विचार नहीं कर सकता। के सूत्र में 'विषयविसस्स उदीरएसु' कहकर स्त्रियों को विषयरूपी विष की उदीरणा या उद्रेक करने वाली कहा ॐ गया है। इसी प्रकार इस कथन का अभिप्राय यह है कि जैसे स्त्री के दर्शन, सान्निध्य, संस्पर्श आदि से पुरुष में
कामवासना का उद्रेक होता है, उसी प्रकार पुरुष के दर्शन, सान्निध्य आदि से स्त्रियों में वासना की उदीरणा फ़ होती है। स्त्री और पुरुष दोनों ही एक-दूसरे की वासनावृद्धि में बाह्य निमित्तकारण होते हैं। अन्तरंग
निमित्तकारण वेदमोहनीय आदि का उदय है तथा बहिरंग निमित्तकारण स्त्री-पुरुष के शरीर आदि हैं। बाह्य + निमित्त मिलने पर वेद-मोहनीय की उदीरणा होती है। मैथुनसंज्ञा की उत्पत्ति के चार मुख्य कारण बतलाते हुए कहा गया है
पणीदरसभोयणेण य तस्सुवजोगे कुसीलसेवाए।
वेदस्सुदीरणाए, मेहुणसण्णा हवदि एवं।। (१) इन्द्रियों को उत्तेजित करने वाले गरिष्ठ रसीले भोजन से, (२) पूर्व जीवन में सेवन किये गये विषयसेवन का स्मरण करने से, (३) कुशील के सेवन से, और (४) वेद-मोहनीयकर्म के उदय से मैथुनसंज्ञा उत्पन्न होती है।
Elaboration-When the deep desire for mating arises in the mind of a human being, his thinking becomes adverse. He loses his faculty of discrimination. He becomes incapable of understanding the grave
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| श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
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Shri Prashna Vyakaran Sutra
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