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________________ ॐ देने के कारण उठी हुई सुलाव से उन चँवरों में स्पष्ट और मनोहर सुगन्ध प्रगट होती है। इस प्रकार के + चँवर उनके दोनों पार्यों में ढुलाए जाने से उनकी सुखद व शीतल हवा उनके अंग-अंग को स्पर्श 5 करती है। वे (वासुदेव-बलदेव) अजेय होते हैं। उनके रथ भी अपराजित होते हैं। बलराम हाथों में हल, मूसल # और बाण धारण करते हैं। वासुदेव पाँच जन्य शंख, सुदर्शन चक्र, कौमुदी गदा शक्ति (त्रिशूल) और ॐ नन्द नामक तलवार धारण करते हैं। वे अत्यन्त उज्ज्वल और भलीभाँति बनाये हुए सुन्दर कौस्तुभमणि और मुकुट को धारण करते हैं। कुण्डलों से उनका मुख प्रकाशित रहता है। उनके नेत्र श्वेतकमल के , समान विकसित होते हैं। उनके कण्ठ और वक्षस्थल पर श्रीवत्स नामक उत्तम चिह्न होता है। वे + महायशस्वी होते हैं। सभी ऋतुओं के सुगन्धित पुष्पों से रचित लम्बी देदीप्यमान एवं विकसित अनूठी वनमाला उनके वक्षस्थल पर सुशोभित होती है। मांगलिक और सुन्दर विभिन्न १०८ लक्षणों से उनके ॐ अंगोपांग शोभा पाते हैं। ___ मतवाले श्रेष्ठ हाथियों की तरह उनकी गति-चाल बड़ी ही सुन्दर और विलसित होती है। उनकी कमर में कटिसूत्र (करधनी) होता है और वे नीले तथा पीले रेशमी वस्त्र पहनते हैं। वे प्रखर तेज से + देदीप्यमान होते हैं। उनकी वाणी का घोष शरद् काल के नये मेघ की गर्जना के समान गम्भीर, मधुर और स्निग्ध होता है। वे मनुष्यों में सिंह के समान पराक्रमी होते हैं। उनकी सिंह के समान पराक्रम व 卐 गति होती है, सिंह के समान बड़े-बड़े पराक्रमी राजाओं के जीवन को उन्होंने अस्त कर दिया है। वे सौम्य होते हैं। द्वारावती-द्वारिका नगरी के निवासियों के लिए वे पर्ण चन्द्रमा के समान ____ उनमें पूर्वजन्म में किये हुए तप का प्रभाव होता है। वे पूर्वकालकृत पुण्यों के उदय से संचित इन्द्रिय-सुख वाले होते हैं। वे कई सौ वर्ष की आयु वाले होते हैं। वे प्रधान देशों की श्रेष्ठ पलियों के साथ भोग करते हैं और एक से एक बढ़कर इन्द्रियजन्य स्पर्श, रस, रूप और गन्ध-स्वरूप विषयों का उपभोग करते हैं। परन्तु अन्त में, वे भी उन कामभोगों से तृप्त न होकर एक दिन मृत्यु की गोद में चले ॐ जाते हैं। ____ विवेचन-पूर्व सूत्रपाठ में चक्रवर्तियों के वैभव, सुख के साधन और अन्त में कामभोगों से अतृप्त रहते हुए ही उनकी मृत्यु आदि का वर्णन किया है। अब इस सूत्र में बलदेवों और वासुदेवों की ऋद्धि, समृद्धि और भोगविलासों का वर्णन करते हुए बताया है कि वे भी इन कामभोगों से अतृप्त होकर ही इस संसार से एक दिन विदा हो जाते हैं। कामभोगों से आज तक किसी को तृप्ति नहीं हुई। चक्रवर्ती की तरह बलभद्र और नारायण भी प्रत्येक उत्सर्पिणी और प्रत्येक अवसर्पिणी काल में होते हैं। चक्रवर्ती की अपेक्षा नारायण अर्थात् वासुदेव की ऋद्धि, शरीरसम्पत्ति, बल-वाहन, विभूति, आदि आधी होती हैं। बलभद्र उनके ज्येष्ठ भ्राता होते हैं। ___प्रस्तुत सूत्र का मूल आशय सभी कालों में होने वाले सभी बलभद्रों और नारायणों के भोगों एवं व्यक्तित्व : का वर्णन करके यह प्रदर्शित करना है कि संसारी जीव उत्कृष्ट से उत्कृष्ट भोग भोगने पर भी, अन्त तक तृप्ति ॐ नहीं पाता है। जीवन की अन्तिम वेला तक भी वह अतृप्त रह कर मरण को प्राप्त हो जाता है। 因F555555555555555FFFF听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐园 श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र (196) Shri Prashna Vyakaran Sutra ऊ55555555555555555555555555555 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002907
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages576
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_prashnavyakaran
File Size19 MB
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