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________________ W h ॐ ताहि य पवरगिरिकुहरविहरणसमुद्धियाहिं णिरुवहयचमरपच्छिमसरीरसंजायाहिं । म अमइलसे यकमलविमुकुलज्जलिय-रययगिरिसिहर-विमलससिकिरण-सरिसकलहोयणिम्मलाहिं । पवणाहयचवलचलियसललिय-पणच्चियवीइपसरियखीरोदग-पवरसागरुप्पूरचंचलाहिं माणसॐ सरपसरपरिचियावासविसदवेसाहिं कणगगिरिसिहरसंसिताहिं उवायप्पायचवलजयिणसिग्यवेगाहिं हंस+ वधूयाहिं चेव कलिया णाणामणिकणगमहरिहत-वणिज्जुज्जलविचित्तडंडाहिं सललियाहिं णरवइसिरि समुदयप्पगासणकरिहिं वरपट्टणुग्गयाहिं समिद्धरायकुलसेवियाहिं कालागुरुपवरकुंदरुक्कतुरुक्कधूववसवाॐ सविसदगंधुद्धयाभिरामाहिं चिल्लिगाहिं उभओपासं वि चामराहिं उक्खिप्पमाणाहिं सुहसीययवायवीइयंगा। ___अजिया अजियरहा हलमूसलकणगपाणी संचचक्कगयसत्तिणंदगधरा पवरुज्जलसुकयविमलकोथूभतिरीडधारी कुंडलउज्जोवियाणणा पुंडरीयणयणा एगावलीकंठरइयवच्छा सिरिवच्छसुलंछणा वरजसा सव्वोउय-सुरभिकुसुमसुरइयपलंबसोहंतवियसंतचित्तवणमालरइयवच्छा अट्ठसयविभत्तलक्खणपसत्थसुंदरविराइयंगमंगा। मत्तगयवरिदललियविक्कमविलसियगई कडिसुत्तगणीलपीयकोसिज्जवाससा पवरदित्ततेया सारयणवत्थणियमहुरगंभीरणिद्धघोसा णरसीहा सीहविक्कमगई अत्थमियपवररायसीहा सोमा । बारवइपुण्णचंदा। ___पुवकयतवप्पभावा णिविविसंचियसुहा अणेगवाससयमाउवंता भज्जाहि य जणवयप्पहाणाहिं लालियंता । अउल-सद्दफरिसरसरूवगंधे अणुहवित्ता ते वि उवणमंति मरणधम्मं अवितत्ता कामाणं। ८६. बलदेव और वासुदेव भी पुनः-पुनः कामभोगों के सेवन से तृप्त न होकर मौत के मुँह में चले . ॐ गये तो साधारण मनुष्य का तो कहना ही क्या? वे मनुष्यों में श्रेष्ठ पुरुष थे, वे महाबली और महापराक्रमी थे। सारंग आदि बड़े-बड़े धनुषों को चढ़ाने वाले, महान् साहस के समुद्र, शत्रुओं से अजेय एवं धनुर्धारियों में प्रधान थे। वे लिए हुए कार्यभार का निर्वाह करने में धोरी बैल के समान नरवृषभ थे। (इस अवसर्पिणी में) : के बलराम (नौवाँ बलभद्र) और केशव-वासदेव (नौवाँ नारायण) दोनों भाई थे। उनका परिवार बड़ा - विशाल था। उन्हीं में वसदेव और समद्रविजयजी आदि दश दशाह-पज्य परुष हए हैं तथा प्रद्यम्न.. प्रतिव, शंब, अनिरुद्ध, निषध, औल्मुकं, सारण, गज, सुमुख और दुर्मुख आदि यादवों की सन्तानों के रूप में साढ़े तीन करोड़ कुमार हुए हैं। रानी रोहिणी के पुत्र बलराम थे और महारानी देवकी के पुत्र थे-श्रीकृष्ण वासुदेव। वे रोहिणीदेवी और देवकीदेवी के हृदय में उत्पन्न हुए आह्लाद की वृद्धि करने वाले थे। सोलह हजार मुकुटबद्ध राजा उनके मार्ग का अनुसरण करने वाले (उनकी आज्ञा में चलने वाले) थे और सोलह हजार सुन्दर युवतियों के वे हृदयवल्लभ थे। नाना प्रकार की मणियों, सोने, रत्न, मोती, मूंगों तथा धन-धान्यों के संचयरूप लक्ष्मी से जिनके 3 खजाने भरे रहते थे। वे हजारों घोड़ों, हाथियों और रथों के स्वामी थे। वे हजारों सुन्दर गाँवों, नगरों, खानों, खेड़ों, कस्बों, मडंबों, द्रोणमुखों, बन्दरगाहों, पत्तनों-मण्डियों, आश्रमों, सुरक्षित किलों (संवाहों) से युक्त अर्द्ध-भरत क्षेत्र के स्वामी थे, जिनमें लोग स्वस्थ, स्थिर, शान्त और प्रमुदित रहते थे, जहाँ, विविध प्रकार के धान्य पैदा करने वाली उपजाऊ भूमि थी। वह बड़े-बड़े सरोवरों, नदियों, छोटे-छोटे । 55555555hhhhhhhh श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र (194) Shri Prashna Vyakaran Sutra 85555555555 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002907
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages576
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_prashnavyakaran
File Size19 MB
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