________________
8595555555555555554555555555555558
))
%%%
)
))
))
))
%%%%%%%%%%%%%
)
))
)
))
%%%%
)
In the Madhya Lok (Middle world) there are five types of Jyotishk gods and human beings, acquatic animals, animals living on land and birds flying in skies (five-sensed animal). All these gods, men and animals engage themselves in non-celebate activities.
There are living beings whose mind is engaged in delusion. They are not yet fully satisfied with the means of sensual activities they possess. They are keen to satisfy their sensual desires, which yet remain to be satisfied. They are in deep distress due to their deep desire to satisfy
eir lust. Their mind is strongly affected by their unsatisfied lust. They are extremely attached to sensory objects. Since they have strong lust, they do not look into its bad results. They are caught in the slime of noncelibacy. They have not yet overpowered their slackness and ignorance. Such living beings (celestial beings, human beings and five-sensed animal beings), male and female, engaging themselves in mutual sexual activities bind themselves in shackles of perception-deluding Karma and conduct-deluding Karma. In other words they collect deluding Karma.
विवेचन : उक्त पाठ में अब्रह्म-कामसेवन करने वाले सांसारिक प्राणियों का कथन है। वैमानिक, ज्योतिष्क, भवनवासी और व्यन्तर, ये चारों निकायों के देवगण, मनुष्य वर्ग तथा जलचर, स्थलचर और खेचर-ये म तिर्यंच-पंचेन्द्रिय कामवासना के चंगुल में फंसे हुए हैं।
___तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीव ही मैथुन सेवन कर सकते हैं, बाकी एकेन्द्रिय से लेकर चतुरिन्द्रिय तक के जीव बाह्य ॐ मैथुन सेवन नहीं कर सकते, उनके केवल नपुंसकवेद के उदय से कामवासना अवश्य होती है।
प्रस्तुत पाठ में अब्रह्मचर्यसेवियों में सर्वप्रथम देवों का उल्लेख किया गया है। इसका कारण यह प्रतीत होता है कि देवों में कामवासना अन्य गति के जीवों की अपेक्षा अधिक होती है। मनुष्य में मैथुन संज्ञा ज्यादा होती है 卐 पर देवों की संख्या बहुत ज्यादा होने से देवों में कामवासना अधिक समझनी चाहिए और भोग का अनुभाग 4
ज्यादा होता है। अधिक विषय सेवन का कारण उनका अत्यन्त सुखमय जीवन है। वैक्रियशक्ति भी उसमें सहायक होती है। वे अनेक प्रकार से विषयसेवन करते हैं।
भगवती सूत्र में बताया है, कि नीचे के देवलोक के देवता तो एक दूसरे की देवियों का अपहरण भी कर लेते हैं। देवियों के कारण उनमें विग्रह भी होते हैं।
चार जाति के देवों में वैमानिक देवों के दो प्रकार हैं-कल्पोपपन्न और कल्पातीत। बारह देवलोकों तक के देव कल्पोपपन्न और ग्रैवेयकविमानों तथा अनत्तरविमानों के देव कल्पातीत होते हैं। अब्रह्म का सेवन कल्पोपपन्न
वैमानिक देवों तक सीमित है, कल्पातीत वैमानिक देवों में कामवासना उपशान्त रहती है। यद्यपि कल्पातीत देवों 9 में भी मोह की विद्यमानता है तथापि उसकी मन्दता व उपशान्तता के कारण वे मैथुन प्रवृत्ति से विरत होते हैं।
वैमानिक देव ऊर्ध्वलोक में स्थित कल्प विमानों में निवास करते हैं। ज्योतिष्क देवों का निवास इस पृथ्वी के समतल भाग से ७९० योजन से ९०० योजन तक ११० योजन के अन्तराल में है। ये सूर्य, चन्द्र आदि के भेद से पाँच प्रकार के हैं। भवनवासी देवों के असुरकुमार आदि दस प्रकार हैं। अधोलोक में रत्नप्रभा पृथ्वी का पिण्ड
)
)
)
))
)
)
步步步步步步步步步步步步步步步步步$%%%%%%%%%%
555
5
卐55555
श्रु.१, चतुर्थ अध्ययन : अब्रह्म आश्रव
(185) Sh.1, Fourth Chapter : Non-Celibacy Aasrava
另%%
%%%%%
%%%
%%%%%
%%%%%
%%
%%%
%%%%
%%
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org