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चित्र - परिचय 11
देवताओं और मनुष्यों द्वारा अब्रह्मचर्य सेवन
Illustration No. 11
चित्र के ऊपर के भाग में अब्रह्मचर्य सेवन करने वाले चार निकाय के देवता बताये गये हैं- वैमानिक देव- ये अपनी देवांगनाओं के साथ अब्रह्म सेवन करते हैं (केवल प्रथम एवं द्वितीय देवलोक तक ही मैथुन सेवन है।)। फिर ज्योतिष्क, भवनवासी और व्यंतर देवों को कामवासना के चंगुल में फँसा बताया है।
इस अब्रह्म सेवन के फलस्वरूप ये देव अगले भवों में पृथ्वी, पानी और वनस्पति रूप ऐकेन्द्रिय जीव बनकर उत्पन्न होते हैं।
अब्रह्म सेवन करते हुए ये देव अपनी आत्मा को दर्शन मोहनीय एवं चारित्र मोहनीय कर्म रूपी पिंजरे में बंद कर लेते हैं।
मनुष्यों द्वारा अब्रह्म सेवन-काम-वासना के प्रबल वेग से प्रभावित होकर स्त्री-पुरुष अब्रह्मचर्य का सेवन करते हैं। अब्रह्म सेवन के फलस्वरूप इस भव में परस्त्रीगामी पुरुष को अनेक दुख भोगने पड़ते हैं । परस्त्री गमन करता हुआ जब वह पकड़ा जाता है तो बंधनों से बाँधकर कारागार में बंद कर दिया जाता है। अगले भवों में भी अब्रह्मचर्य सेवन के फलस्वरूप वह तिर्यंच गति पाता है और बंधनों में बाँधकर पीटा जाता है।
परस्पर अब्रह्म सेवन करते हुए वे नर-नारी अपनी आत्मा को दर्शनमोहनीय व चारित्र मोहनीय कर्म रूपी पिंजरे में कैद कर लेते हैं। - सूत्र 82, पृ. 184 GODS AND HUMANS INDULGING IN NON-CELIBACY
The illustration at the top shows gods of four divine classes indulging in non-celibacy. Gods of celestial vehicles (Vaimanik Devs) indulge in carnal enjoyments with their divine damsels (sexual activity is limited only to the first and second heavens). Also shown are the Jyotishk, Bhavanvasi and Vyantar gods caught in the trap of lust.
As a consequence of these carnal activities these gods take rebirth as one-sensed beings of earth, water and plant-bodied classes.
Due to these carnal indulgences these gods push their souls into the cage of perception and conduct deluding karmas.
Humans indulging in non-celibacy - Driven by intense lust men and women indulge in carnal pleasures. As a consequence of non-celibacy, individuals enjoying sex out of wedlock have to suffer many miseries. When caught they are tied and imprisoned. Even in next birth they are born as animals, tied and beaten.
Due to these carnal indulgences these men and women push their souls into the cage of perception and conduct deluding karmas.
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-Sutra-82, page-184
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