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ग्रामादि लूटने वाले VILLAGE ROBBERS
६८. णिरणुकंपा णिरवयक्खा गामागर-णगर-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुह-पट्टणासम-णिगमजणवए य धणसमिद्धे हणंति थिरहियय-छिण्ण-लज्जा-बंदिग्गह-गोग्गहे य गिण्हंति दारुणमई णिक्किवा णियं हणंति छिंदति गेहसंधि णिक्खित्ताणि य हरंति धणधण्णदव्वजायाणि जणवय-कुलाणं णिग्घिणमई परस्स दबाहिं जे अविरया।
६८. पराया धन चुराने वाले लोगों का हृदय अत्यन्त कठोर, अनुकम्पा, दया से शून्य होता है, वे परलोक की जरा भी परवाह नहीं करते, ऐसे लोग धन से समृद्ध ग्रामों, आकरों, नगरों, खेटों, कर्बटों, मडम्बों, पत्तनों, द्रोणमुखों, आश्रमों, निगमों एवं देशों को नष्ट कर देते-उजाड़ देते हैं। और वे अत्यन्त कठोर हृदय वाले या निहित स्वार्थ वाले, निर्लज्ज लोग मानवों को बंदी बनाकर अथवा गायों आदि पशुओं को पकड़कर ले जाते हैं। दारुण मति वाले, निर्दय या निकम्मे अपने-आत्मीय जनों का भी घात कर देते हैं। वे घरों में सेंध लगाते हैं।
जो परकीय द्रव्यों के लोभ से निवृत्त नहीं हैं, ऐसे निर्दय बुद्धि वाले (वे चोर) लोगों के घरों में रखे हुए धन-धान्य एवं अन्य प्रकार के द्रव्य के समूहों को चुरा लेते हैं।
68. The people who steal the money belonging to others are extremely rude. They have no compassion. They care a fig for the next life. They destroy or ruin prosperous villages, towns, colonies, cities, ports, corporations, ashrams, municipalities, aakars, khetas, karbats, ports. They always look to their personal gain. They are shameless. They make the people prisoners and carry away the cattle. They are fierce, cruel and insolent. They kill even their own relations. They break into the houses.
Those thieves have no mercy. They are always greedy for the property of others. They steal money, grains and other articles stored by people. ___ विवेचन : चोरी करने वाले लोग प्रायः निर्दय-अनुकम्पाहीन और क्रूर होते हैं, उन्हें अदत्तादान के परिणामस्वरूप परलोक में होने वाली दुर्दशाओं की परवाह नहीं होती क्योंकि वे प्रायः अदूरदर्शी और लोभग्रस्त रहते हैं। दयावान और परलोक से डरने वाले विवेकी जन इस इह-परलोक-दुःखप्रद कुकृत्य में प्रवृत्त नहीं होते।
प्रस्तुत पाठ में आये कुछ विशेष शब्दों के अर्थ इस प्रकार हैं
ग्राम-छोटी बस्ती। जहाँ किसानों की बहुलता हो। आकर-जहाँ सोना-चाँदी आदि की खाने हों। खेड-खेट-धूल के परकोटे वाली बस्ती।
कब्बड-कर्बट-जहाँ थोड़े मनुष्य रहते हों। मडम्ब-जिसके आस-पास कोई बस्ती न हो। द्रोणमुख-जहां जल एवं स्थल दोनों मार्ग हों ऐसा बन्दरगाह।
श्रु.१, तृतीय अध्ययन : अदत्तादान आश्रव
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Sh.1, Third Chapter : Stealing Aasrava
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