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________________ 2 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 2 फफफफफफफफफफफफ 5 विउलजलचक्कवाल - महाणईवेगतुरिय आपूरमाणगंभीर - विउल - आवत्त - चवल - भममाणगुप्पमाणुच्छलंत पच्चोणियत्त-पाणिय-पधावियखर - फरुस - पयंडवाउलियसलिल - फुटंत वीइकल्लोलसंकुलं महामगर5 मच्छ- कच्छ भोहार - गाह - तिमि - सुं सुमार - सावय- समाहय - समुद्वायमाणक- पूरघोर-परं कायरजणहियय-कंपणं घोरमारसंतं महब्भयं भयंकरं पइभयं उत्तासणगं अणोरपारं आगासं चेव णिरवलंबं । उप्पायणपवण- धणिय - गोल्लिय उवरुवरितरंगदरिय - अइवेग-वेग - चक्खुपहमुच्छरंतं । कत्थइ - गंभीर - विउलगज्जिय - गुंजिय - णिग्घायगरुयणिवडिय - सुदीहणीहारि-दूरसुच्चंत - गंभीरपडिपहरुंभंतजक्ख-रक्खस - कुहंड - पिसायरुसिय- तज्जाय – उवसग्ग - सहस्ससंकुलं विरइयबलिहोम-धूवउवयारदिण्ण-रुहिरच्चणाकरणपयत - जोगपययचरियं परियंत धु बहुप्पाइयभूयं जुगंत - कालकप्पोवमं दुरंतं महाणईणईबई - महाभीमदरिसणिज्जं दुरणुच्चरं विसमप्पवेसं दुक्खुत्तारं दुरासयं । असियसिय-समूसियगेहि हत्थंतरकेहिं वाहणेहिं अइवइत्ता समुद्दमज्झे हणंति, गंतूण जणस्स पोए परदव्यहरा णरा । लवण-सलिलपुणं श्रु. १, तृतीय अध्ययन : अदत्तादान आश्रव ६७. (इन वनवासी चोरों के सिवाय कुछ अन्य प्रकार के समुद्री लुटेरे, डाकू भी होते हैं जो धन के लालच में फँसकर समुद्र यात्रा करने वाले यात्रियों को लूटते हैं । यहाँ उनका दिग्दर्शन कराया जाता है। वे लुटेरे जहाँ रत्नों के खजाने छिपे पड़े हैं, ऐसे समुद्र में चढ़ाई करते हैं। वह समुद्र कैसा होता है ? वह समुद्र हजारों-हजारों तरंग - मालाओं से व्याप्त होता है। पीने के पानी के अभाव में जहाज के यात्री आकुल-व्याकुल होकर कल-कल ध्वनि से क्रन्दन करते हैं। हजारों पाताल - कलशों की वायु के क्षुब्ध होने से तेजी से ऊपर उछलते हुए जलकणों की रज से वातावरण अन्धकारमय बना होता है । निरन्तर प्रचुर मात्रा में उठने वाले श्वेत वर्ण के फेन ही मानों उस समुद्र का अट्टहास है । वहाँ पवन के प्रबल थपेड़ों से जल क्षुब्ध हो रहा होता है। जल की तरंग - मालाएँ तीव्र वेग के साथ तरंगित होती हैं। चारों ओर तूफानी हवाएँ उसे क्षोभित कर रही होती हैं। जो तट के साथ टकराते हुए जल-समूह से तथा मगरमच्छ आदि जलीय जन्तुओं कारण अत्यन्त चंचल हो रहा होता है। बीच-बीच में उभरे हुए ऊपर उठे हुए पर्वतों के साथ टकराने वाले एवं बहते हुए अथाह जल-समूह से युक्त हैं, गंगा आदि महानदियों के वेग से जो शीघ्र ही लबालब भर जाने वाला है, जिसके गम्भीर एवं अथाह भँवरों में जलजन्तु अथवा जलसमूह चपलतापूर्वक भ्रमण करते, व्याकुल होते, ऊपर-नीचे उछलते हैं, जो वेगवान् अत्यन्त प्रचण्ड, क्षुब्ध हुए जल में से उठने वाली लहरों से व्याप्त हैं। महाकाय मगर - मच्छों, कच्छपों, ओह नामक जल-जन्तुओं, घड़ियालों, बड़ी मछलियों, सुंसुमारों एवं श्वापद नामक जलीय 5 जीवों के परस्पर टकराने से तथा एक-दूसरे को निगल जाने के लिए दौड़ने से वह समुद्र अत्यन्त घोर- 卐 भयावह बना होता है, जिसे देखते ही कमजोर मनुष्यों का हृदय काँप उठता है, जो अतीव भयानक 5 और प्रतिक्षण भय उत्पन्न करने वाला है; अतिशय उद्वेग पैदा करने वाला है, जिसका ओर 卐 卐 (141) Jain Education International Sh. 1, Third Chapter: Stealing Aasrava 卐 फफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ For Private & Personal Use Only - 5 5 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 5 5 5 5 5 5 55 5 5 55 « 卐 卐 卐 5 www.jainelibrary.org
SR No.002907
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages576
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_prashnavyakaran
File Size19 MB
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