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555555 रुलंतविन्भलविलावकलुणे; हयजोह-भमंत-तुरग-उद्दाममत्तकुंजर-परिसंकियजणणिबुक्कच्छिण्णधयभग्गरहवरणट्ठसिरकरिकलेवराकिण्ण-पतित-पहरण-विकिण्णाभरण-भूमिभागे।
णच्चं तक बंधपउ र भयंकर-वायस-परि लें त-गिद्धमंडल-भमंतच्छायंधकार-गंभीरे । वसुवसुहविकंपियव्व-पच्चक्खपिउवणं परमरुद्दबीहणगं दुष्पवेसतरगं अहिवयंति संगामसंकडं परधणं महंता।
६५. ढीला होने के कारण इधर उधर हिलते चंचल एवं उन्नत उत्तम मुकुटों, तीन सेहरों वाले मुकुटों-ताजों, कुण्डलों तथा नक्षत्र नामक आभूषणों की उस युद्ध में जगमगाहट होती है। स्पष्ट दिखाई देने वाली पताकाओं, ऊपर फहराती हुई ध्वजाओं, विजय को सूचित करने वाली वैजयन्ती पताकाओं तथा चंचल-हिलते-डुलते चामरों और छत्रों के कारण होने वाले अन्धकार के कारण वह रणक्षेत्र गम्भीर प्रतीत होता है।
घोड़ों की हिनहिनाहट से, हाथियों की चिंघाड़ से, रथों की घनघनाहट से, पैदल सैनिकों (प्यादों) की हर-हर आवाज से, तालियों की गड़गड़ाहट से, सिंहनाद की ध्वनियों से, सीटी बजाने की-सी आवाजों से, भय के कारण जोर-जोर की चिल्लाहट से, हँसने के कारण जोर की किलकारियों से और एक साथ उत्पन्न होने वाली हजारों कण्ठों की ध्वनि से वहाँ भयंकर गर्जनाएँ होती हैं।
उसमें एक साथ हँसने, रोने और कराहने के कारण कलकल ध्वनि होती रहती है। बीच-बीच में मुँह फुलाकर आँसू बहाते हुए बोलने के कारण वह रौद्र दिखाई देते हैं। उस युद्ध में भयावने दाँतों से होठों को जोर से चबाने-काटने वाले योद्धाओं के हाथ अचूक प्रहार करने के लिए उद्यत-तत्पर रहते हैं। क्रोध की उग्रता के कारण योद्धाओं के नेत्र लाल-लाल और तरेरते हुए होते हैं। वैरमय दृष्टि के कारण क्रोध परिपूर्ण चेष्टाओं से उनकी भौंहें तनी रहती हैं और इस कारण उनके ललाट पर तीन सल पड़ी हुई होती हैं। उस युद्ध में, मार-काट करते हुए हजारों योद्धाओं के पराक्रम को देखकर सैनिकों के पौरुष-पराक्रम की वृद्धि हो जाती है। हिनहिनाते हुए अश्वों और रथों द्वारा इधर-उधर भागते हुए युद्धवीरों तथा शस्त्र चलाने में कुशल और सधे हुए हाथों वाले सैनिक हर्षविभोर होकर, दोनों भुजाएँ ऊपर उठाकर, खिलखिलाकर-ठहाका मारकर हँस रहे होते हैं, किलकारियाँ मारते हैं। __ चमकती हुई ढालें एवं कवच धारण किये हुए, मदोन्मत्त हाथियों पर आरूढ़ प्रस्थान करते हुए योद्धा, शत्रुयोद्धाओं के साथ परस्पर जूझते हैं तथा युद्धकला में कुशलता के कारण अहंकारी योद्धा अपनी-अपनी तलवारें म्यानों में से निकालकर, फुर्ती के साथ रोषपूर्वक परस्पर-एक-दूसरे पर प्रहार करते हैं। हाथियों की सूंड़े काट रहे होते हैं, जिससे उनके भी हाथ कट जाते हैं। ऐसे भयावह युद्ध में मुद्गर आदि द्वारा मारे गये, काटे गये या फाड़े गये हाथी आदि पशुओं और मनुष्यों के युद्धभूमि में बहते हुए रुधिर के कीचड़ से मार्ग लथपथ हो रहे होते हैं।
कूँख के फट जाने से भूमि पर बिखरी हुई एवं बाहर निकलती हुई आँतों से रक्त प्रवाहित होता रहता है तथा तड़फड़ाते हुए, विकल, मर्माहत, बुरी तरह से कटे हुए, प्रगाढ़ प्रहार से बेहोश हुए, इधर-उधर लुढ़कते हुए विह्वल मनुष्यों के विलाप के कारण वह युद्धभूमि बहुत ही करुणाजनक प्रतीत
श्रु.१, तृतीय अध्ययन : अदत्तादान आश्रव
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Sh.1, Third Chapter : Stealing Aasrava
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