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555555555555555555555 555555)का # संपदायगउच्छिंपग-सत्थघायग-बिलचोरीकारगा य णिग्गाहविप्पलुंपगा बहुबिहतेणिक्कहरणबुद्धी एए । अण्णे य एवमाई परस्स दव्याहि जे अविरया।
इस सूत्र में चौर्य कर्म करने वालों का वर्णन किया जाता है
६२. उस पूर्वकथित चोरी को वे लोग करते हैं जो दूसरों का धन हरण करने वाले हैं, हरण करने म में कुशल हैं, अनेकों बार चोरी कर चुके हैं और मौका जानने वाले हैं, जिनका दुस्साहसी स्वभाव है।
परिणाम की चिन्ता करके भी चोरी का साहस करते हैं, जो तुच्छ हृदय वाले, अत्यन्त महत्वाकांक्षी एवं । लोभ से ग्रस्त हैं, जो वाणी के आडम्बर से अपनी असलियत को छिपाने वाले हैं या दूसरों को भ्रमित - करने वाले हैं. जो दसरों के धनादि में आसक्त हैं. जो सामने से सीधा प्रहार करने वाले हैं. जो लिए हए: । ऋण को नहीं चुकाने वाले हैं, जो की हुई सन्धि अथवा प्रतिज्ञा या वायदे को भंग करने वाले हैं, जो
राजकोष आदि को लूटकर या अन्य प्रकार से राज्य शासन का अनिष्ट करने वाले हैं, देश निकाला दिये जाने के कारण जो समाज द्वारा बहिष्कृत हैं, जो घातक हैं या उपद्रव, दंगा आदि करने वाले हैं, । गाँवों, नगरों आदि में घात करने वाले हैं, मार्ग में पथिकों को लूटने वाले या मार मारने वाले हैं, आग । लगाने वाले और तीर्थयात्रियों को लूटने वाले जो (जादूगरों की तरह) हाथ की सफाई वाले हैं-जेब या । गाँठ काट लेने में कुशल हैं, जो जुआरी हैं, चुंगी लेने वाले या कोतवाल हैं, स्त्री-चोर हैं अथवा स्त्री का !
वेष धारण करके चोरी करते हैं, जो पुरुष की वस्तु को अथवा (आधुनिक डकैतों की भाँति फिरौती : # लेने आदि के उद्देश्य से) पुरुष का अपहरण करते हैं, जो सेंध लगाने वाले हैं, गाँठ काटने वाले हैं, जो ।
पराया धन उड़ाने वाले हैं, (धन हाथ न लगने पर जो निर्दयता या भय के कारण अथवा आतंक फैलाने A के लिए) मारने वाले हैं, जो वशीकरण या औषधि आदि का प्रयोग करके धनादि का अपहरण करने । वाले हैं, सदा दूसरों को सताने वाले हैं, गुप्तचोर, गो-चोर-गाय चुराने वाले, अश्व-चोर एवं स्त्रियों को ! चुराने वाले हैं, अकेले ही चोरी करने वाले, घरों में से आभषण आदि निकाल लेने वाले. चोरों को :
बुलाकर दूसरे के घर में चोरी करवाने वाले, चोरों की सहायता करने वाले, चोरों को भोजनादि देने वाले, लुक-छिपकर चोरी करने वाले, सार्थ-बनजारों को लूटने वाले, दूसरों को धोखा देने के लिए बनावटी आवाज में बोलने वाले, राजा द्वारा दण्डित बन्दीगृहों से भागे हुए एवं छलपूर्वक राजाज्ञा का । उल्लंघन करने वाले, अनेकानेक प्रकार से चोरी करके दसरों का धन चराने की बद्धि वाले. ये लोग ! और इसी कोटि के अन्य लोग, जो दूसरे के द्रव्य को ग्रहण करने की इच्छा से निवृत्त नहीं हैं अर्थात् अदत्तादान के त्यागी नहीं हैं-जिनमें परधन के प्रति लालसा विद्यमान है, वे चौर्य कर्म में प्रवृत्त होते हैं। ___62. This ophorism describes people indulging in stealing-the above, said act of stealing is done by those people whose profession is usurping y property of others. They are expert in this act. They have committed ! theft many times. They are well-versed in finding out proper occasion for committing theft. They have a daring temperament. They care little for its result. They are bold. They have a mean heart. They are extremely
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| श्रु.१, तृतीय अध्ययन : अदत्तादान आश्रव
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Sh.1, Third Chapter: Stealing Aasrava
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