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(18) Aveel — It causes pain to others. The person whose property is stolen certainly feels pain.
(19) Aakkhevo— It is to pounce on others belongings.
(20) Khevo — To take others property by force.
(21) Vikkhevo-To take others things and hide them.
(22) Koodaya — To be dishonest in weights and measures.
(23) Koolamasi - To bring dishonour to the family.
(24) Kankha— To have a intense desire for a thing belonging to others. It is the basic cause of theft.
(25) Lalappan-patthanaye-To procure money by flattering others or by false praise.
(26) Vasanam-Bad habit or the cause of troubles.
(27) Ichha-Muchha-To have a deep attachment for money belonging to others.
(28) Tanha-Gehi-To be deeply attached to what one has got and to have a desire of having that which has not got in yet.
(29) Niyadikamm-An act done in a deceitful manner.
(30) Aparachhanti-To do a thing avoiding others.
These are the important synonyms of adattadan asrava (inflow of karma through stealing) which is full of sinful act and dirty as it leads to quarrel. There are many more synonyms also.
विवेचन : किसी की कोई वस्तु असावधानी से कहीं गिर गई हो, भूल से रह गई हो, जानबूझकर रखी हो, उसे उसके स्वामी की आज्ञा, अनुमति या इच्छा के बिना ग्रहण कर लेना 'चोरी' कहलाता है।
यहाँ प्रश्न होता है कि तिनका मिट्टी, रेत आदि वस्तुएँ, जो सर्व साधारण के उपयोग के लिए मुक्त हैं, जिनके ग्रहण करने का सरकार की ओर से निषेध नहीं है, न कोई दण्ड है। जिसका कोई स्वामी विशेष भी नहीं है, उसको ग्रहण करना क्या चोरी है ? समाधान है - स्थूल अदत्तादान का त्यागी गृहस्थ यदि उसे ग्रहण कर लेता है तो उसके व्रत में बाधा नहीं आती तथा लोकव्यवहार में वह चोरी नहीं कहलाती है। परन्तु तीन करण और तीन योग से अदत्तादान के त्यागी साधुजन ऐसी वस्तु को भी ग्रहण नहीं कर सकते। आवश्यकता होने पर वे उसके स्वामी या शक्रेन्द्र की अनुमति लेकर ही ग्रहण करते हैं ।
अदत्तादान के तीस नामों के अर्थ का विस्तृत चिन्तन करने से इन नामों से चौर्यकर्म की व्यापकता का परिबोध होता है। इन नामों से चोरी की मूल प्रेरणा अतृप्ति, उससे होने वाले फल अपकीर्ति, भय तथा परलोक दुर्गति तक का कथन समाहित है।
श्रु. १, तृतीय अध्ययन : अदत्तादान आश्रव
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Sh. 1, Third Chapter: Stealing Aasrava
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