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________________ फ्र (५) परलाभो - परलाभ - दूसरे के श्रम से उपार्जित वस्तु आदि लेना । (६) असंजमो - असंयम चोरी करने से संयम का विनाश हो जाता है । अथवा मन व इन्द्रियों के असंयम को बढ़ाने वाला है। (७) परधमि गेही - परधन गृद्धि-दूसरे के धन में आसक्ति - लोभ-लालच होने पर चोरी की जाती है । यही चोरी का प्रेरक कारण है। - (८) लोलिक्कं - लौल्य - दूसरों की वस्तु पर लोलुपता । (९) तक्करत्तणं - तस्करत्व - तस्कर वृत्ति, लुटेरों का काम है। (१०) अवहारो - अपहार - स्वामी की इच्छा के बिना या धोखा देकर लेना । (११) हत्थलहुत्तणं - हस्तलघुत्व - हाथ की सफाई लोलुपता चोरी को उत्तेजना देती है। (१२) पावकम्मकरणं - पापकर्मकरण - चोरी पापकर्म है। इसमें हिंसा, असत्य, निर्दयता, लोभ आदि पाप छिपे हैं। (१३) तेणिक्कं - स्तेनिका - चौर्यकर्म । (१४) हरणविप्पणास - हरणविप्रणाश-परायी वस्तु को नष्ट-भ्रष्ट करना । (१५) आदियणा - आदान- बिना आज्ञा के परधन को लेना । (१६) धणाणं लुंपना - धनलुम्पता - दूसरे के धन को गायब करना । (१७) अप्पच्चओ - अप्रत्यय - अविश्वास का कारण । (१८) अबीलो - अवपीड-दूसरे को पीड़ा उपजाना । जिसकी चोरी की जाती है, उसे पीड़ा अवश्य होती है। (१९) अक्खेवो - आक्षेप - परकीय द्रव्य पर झपटना । (२०) खेवो - क्षेप - दूसरे की वस्तु छीन लेना । (२१) विक्खेवो - विक्षेप - परकीय वस्तु लेकर इधर-उधर कर देना । (२२) कूडया - कूटता - तोल, माप आदि में बेईमानी करना । (२३) कुलमसी - कुलमषि - कुल को कलंकित करने वाला कर्म । (२४) कंखा - कांक्षा - दूसरे की वस्तु पर तीव्र इच्छा होना। यही चोरी का मूल कारण है। (२५) लालप्पणपत्थणाप - लालपन - प्रार्थना - लल्लो - चप्पो करके दूसरों से धन आदि लेना । अर्थात् कुछ लोग खुशामद या चापलूसी करके दूसरों का धन हड़पते हैं यह भी चोरी है । (२६) आससणाय वसणं - व्यसन - विपत्तियों का कारण अथवा बुरी आदत है। श्रु. १, तृतीय अध्ययन : अदत्तादान आश्रव फ़फ़ Jain Education International ( 127 ) Sh. 1, Third Chapter: Stealing Aasrava For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002907
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages576
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_prashnavyakaran
File Size19 MB
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