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Vedas, Yogashastra the Agams and the principles laid therein. They are without any scriptural knowledge.
Passing through such a wretched disturbed state, those followers of falsehood, face dishonour, disrespect, and accusations in their life. They cannot maintain cordial relations. They back-bite and face dreadful
hereof. They are badly treated by teachers, relatives and friends, Many false accusations are levelled against them, which cause great mental agony and which cannot be washed off in the entire life or could be removed only with great difficulty. Since they have to listen sharp, harsh, unlovable, words, condemnation, they remain with dulled face. They do not get good clothes to wear. They have to live in a dirty colony facing extreme trouble and pain. They have neither physical happiness nor mental peace. विवेचन : प्रारम्भ में कहा गया है कि मृषावाद के फल को नहीं जानने वाले अज्ञानी जन मिथ्या भाषण
। वास्तव में जिनको असत्य भाषण के यहाँ प्ररूपित लोमहर्षक फल का वास्तविक ज्ञान नहीं होता है अथवा जो जानकर भी उस पर पूर्ण विश्वास नहीं करते, वे भी अनजान की श्रेणी में ही गिने जाते हैं।
असत्य भाषण को साधारण जन सामान्य या हल्का दोष मानते हैं और साधारण-सी स्वार्थसिद्धि के लिए, दूसरों को धोखा देने के लिए, क्रोध से प्रेरित होकर, लोभ के वशीभत होकर, भय के कारण अथवा हास्यविनोद में लीन होकर असत्य बोलते रहते हैं। उन्हें इसके दुष्परिणाम की चिन्ता नहीं होती या इतने कटु दुष्परिणामों का ज्ञान भी नहीं होता, इसलिए शास्त्रकार ने यहाँ बतलाया है कि मृषावाद का फल इतना गुरुतर एवं भयंकर होता है कि नरकगति और तिर्यंचगति के भयानक कष्टों को दीर्घकाल पर्यन्त भोगने के पश्चात् भी उनसे पिण्ड नहीं छूटता। उसका फल जो शेष रह जाता है उसके प्रभाव से मृषावादी जब मनुष्यगति में उत्पन्न होता है तब भी वह अत्यन्त दुरवस्था का भागी होता है। दीनता, दरिद्रता, भाग्यहीनता आदि उसका पीछा नहीं छोड़ती। वह हर प्रकार के सुख साधनों से तो वंचित रहता ही है। शारीरिक दृष्टि से भी रोगी घृणित और दूसरों के तिरस्कार का पात्र होता है। ___मृषावाद वाणी व्यवहार से होता है, अतः मृषावादी की बोली अस्पष्ट व तुतलाती व कौए जैसी कर्ण कटु होती है। जब वे बोलते हैं तो सभी को अप्रिय तथा अरुचिकर लगती है। उनमें से कई तो गूंगे ही होते हैं।
Elaboration--It has been said in the beginning that those who do not know the consequences of false speech, they make false utterances. In fact those who are ignorant about the results of falsehood as mentioned above, or those who even after having such knowledge, do not have faith in it, they also belong to this category.
The common man considers that to make a false statement is a minor fault. So they tell lie for minor selfish gain, for deceiving others, under influence of anger or greed, out of fear or in a fit of laughter or minor
श्रु.१, द्वितीय अध्ययन : मृषावाद आश्रव
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Sh.1, Second Chapter: Falsehood Aasrava
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