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15 युद्धादि के उपदेश - आदेश LESSON OR ORDER ABOUT WAR
५७. अप्पमहउक्कोसगा य हम्मंतु पोयसत्था, सेण्णा णिज्जाउ जाउ डमरं, घोरा वट्टंतु य संगामा पवहंतु य सगडवाहणाई, उवणयणं चोलगं विवाहो जण्णो अमुगम्मि य होउ दिवसेसु करणेसु मुहुत्ते क्ख तिहि ।
अज्ज होउ ण्हवणं मुइयं बहुखज्जपिज्जकलियं कोउगं विण्हावणगं, संतिकम्माणि कुणह ससि - रविगोवराग - विसमेसु सज्जणपरियणस्स य णियगस्स य जीवियस्स परिरक्खणट्टयाए पडिसीसगाई य देह, य सीसोवहारे विविहोसहिमज्जमंस - भक्खण्ण - पाण - मल्लाणुलेवणपईवजलि-उज्जलसुगंधिधूवावगार- पुप्फ-फल-समिद्धे पायच्छित्ते करेह, पाणाइवायकरणेणं बहुविहेणं विवरीउप्पायदुस्सुमिणपावसउण- असोमग्गहचरिय - अमंगल - णिमित्त - पडिघायहेउं, वित्तिच्छेयं करेह, मा देह किंचि दाणं, सुट्ट हओ सुट्टु हओ सुट्टु छिण्णो भिण्णोत्ति उवदिसंता ।
दह
एवंविहं करेंति अलियं मणेण वायाए कम्मुणा य अकुसला अणज्जा अलियाणा अलियधम्म - णिरया
अलियासु कहासु अभिरमंता तुट्ठा अलियं करेत्तु होइ य बहुप्पयारं ।
५७. कुछ लोग दूसरों को इस प्रकार के आदेश - उपदेश आदि करते हैं जैसे- छोटे, मध्यम और
बड़े नौका - दल या नौका- व्यापारियों या नौका- यात्रियों के समूह को नष्ट कर दो । युद्धादि के लिए सेना
प्रयाण करे, संग्राम भूमि में जाये, घोर युद्ध प्रारम्भ हो । गाड़ी और नौका आदि वाहन चलें, उपनयन (यज्ञोपवीत) संस्कार, शिशु का मुण्डन संस्कार, विवाह-संस्कार, यज्ञ- ये सब कार्य अमुक दिनों में, करणों में, मुहूर्तों में, नक्षत्रों में और तिथियों में होने चाहिए।
आज सौभाग्य के लिए स्नान करना चाहिए अथवा सौभाग्य एवं समृद्धि के लिए प्रमोद - स्नान कराना चाहिए- आज प्रमोदपूर्वक बहुत विपुल मात्रा में खाद्य पदार्थों एवं मदिरा आदि पेय पदार्थों के भोज के साथ सौभाग्य वृद्धि अथवा पुत्रादि की प्राप्ति के लिए वधू आदि को स्नान कराओ तथा (डोरा बाँधना आदि) कौतुक करो। सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण और अशुभ स्वप्न के फल का निवारण करने के लिए विविध मंत्रादि से संस्कारित जल से स्नान और शान्ति कर्म करो। अपने कुटुम्बीजनों की अथवा अपने की रक्षा के लिए कृत्रिम - आटे आदि से बनाये हुए प्रतिशीर्षक सिर की आकृति बनाकर चण्डी आदि देवियों की भेंट चढ़ाओ । अनेक प्रकार की औषधियों, मद्य, माँस, मिष्ठान्न, अन्न, पान, पुष्पमाला,
जीवन
पशुओं दुःस्वप्न,
चन्दन - लेपन, उबटन, दीपक, सुगन्धित धूप, पुष्पों तथा फलों से परिपूर्ण विधिपूर्वक बकरा आदि के सिरों की बलि दो । विविध प्रकार की हिंसा करके अशुभ सूचक उत्पात, प्रकृतिविकार, 5 अपशकुन, क्रूर ग्रहों के प्रकोप, अमंगल सूचक अंगस्फुरण - ( अवयवों का फड़कना) आदि के
फल को नष्ट करने के लिए प्रायश्चित्त करो। अमुक की आजीविका नष्ट कर दो। किसी को कुछ भी दान 5
मत दो। वह मारा गया, यह अच्छा हुआ। उसे काट दिया, यह ठीक हुआ । उसके टुकड़े-टुकड़े कर
डाले, यह बहुत अच्छा हुआ।
श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
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Shri Prashna Vyakaran Sutra
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