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does not have the qualities of knowing and seeing. In case the soul does not have the qualities of knowing and others, then who else shall have these qualities. It is impossible that matter may have consciousness.
According to Jainism, soul is consciousness. From the substantive! point of view it is permanent and unchanging but from the point of view of modes, it is impermanent and changing. It is the doer of its good and
bad Karmas and also the experiencer of the fruits of those Karmas. So it i is not absolutely non-doer and devoid of qualities. It is also not non41 existent (amurat).
Thus in this aphorism it is stated that different beliefs of other schools of thought about creation of the Universe and the soul are not true.
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नानानानानाना
मृषावाद FALSEHOOD (MRISHAVAD)
५०. जं वि इहं किंचि जीवलोए दीसइ सुकयं वा दुकयं वा एयं जदिच्छाए वा सहावेण वावि दइवतप्पभावओ वावि भवइ। णत्थेत्थ किंचि कयगं तत्तं लक्खणविहाणणियत्तीए कारियं एवं केइ जंपति ॐ इडि-रस-सायागारवपरा बहवे करणालसा परूवेंति धम्मवीमंसएणं मोसं ।
५०. कोई-कोई वादी ऋद्धि, रस और साता के गर्व (अहंकार) से लिप्त या इनमें अनुरक्त बने हुए * और क्रिया करने में आलसी होते हैं, वे धर्म की मीमांसा (विचारणा) करते हुए इस प्रकार मिथ्या 卐 प्ररूपणा कहते हैं
इस जीवलोक में जो कुछ भी सुकृत या दुष्कृत दिखाई देता है, वह सब यदृच्छा (अकस्मात्) ईश्वर : ॐ की इच्छा से, स्वभाव से अथवा दैव प्रभाव-विधि के प्रभाव से ही होता है। इस लोक में कुछ भी ऐसा । फ़ नहीं है जो पुरुषार्थ से किया गया तत्त्व (सत्य) हो। लक्षण (वस्तुस्वरूप) और विद्या (भेद) की की ।
नियति ही है, ऐसा कोई कहते हैं। पदार्थ के लक्षण – स्वरूप और भेदों की उत्पत्ति करने वाली नियति । ही है।
50. Some scholars are under the influence of the ego of wealth, comforts and pleasures so they are slack in activity. While describing dharma, they depict it in the following wrong manner
Whatever is seen in this world inhabited by living beings as good or 4 bad act, it is all due to such a desire of Ishwar, or due to the very nature
or due to the influence of fate. There is nothing in this world, which is due to efforts. The cause of the attributes of things and variations in them is fate is what they say.
विवेचन : प्रस्तुत सूत्र में एकान्त यदृच्छावादी, स्वभाववादी, दैव या द्वैतवादी एवं नियतिवादी के मन्तव्यों का उल्लेख करके उन्हें मृषा (मिथ्या) बतलाया गया है। आचार्य अभयदेव सूरि कृत टीका के अनुसार उल्लिखित वादों का आशय संक्षेप में इस प्रकार है
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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
(98)
Shri Prashna Vyakaran Sutra
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