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________________ பூமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிபூ**தமிழ்தமி**************தி किसी-किसी की मान्यता है कि यह समग्र जगत् अण्डे से उत्पन्न हुआ है और स्वयंभू ने इसका निर्माण किया है। अंडसृष्टि के मुख्य दो प्रकार हैं- एक प्रकार छान्दोग्योपनिषद् (३ / १९) में बतलाया गया है और दूसरा प्रकार मनुस्मृति में दिखलाया गया है। छान्दोग्योपनिषद् के अनुसार सृष्टि से पहले प्रलयकाल में यह जगत् असत् अव्यक्त था । फिर वह सत् अर्थात् नाम रूप कार्य की ओर अग्रसर हुआ। तत्पश्चात् यह अंकुरित बीज के समान कुछ-कुछ स्थूल बना । आगे चलकर वह जगत् अण्डे के रूप में बन गया। एक वर्ष तक वह अण्डे के रूप में बना रहा। एक वर्ष बाद अण्डा फूटा। अण्डे के कपालों (टुकड़ों) में से एक चाँदी का और दूसरा सोने का बना । जो टुकड़ा चाँदीका उससे यह पृथ्वी बनी और सोने के टुकड़े से ऊर्ध्वलोक-स्वर्ग बना । गर्भ का जो जरायु (वेष्टन ) था उससे पर्वत बने और जो सूक्ष्म वेष्टन था वह मेघ और तुषार रूप में परिणत गया। उसकी धमनियाँ नदियाँ बन गईं। जो मूत्राशय का जल था वह समुद्र बन गया । अण्डे के अन्दर से जो गर्भ रूप में उत्पन्न हुआ वह सूर्य बना । 1 यह स्वतन्त्र अंडे से बनी सृष्टि है। दूसरे प्रकार की अंडसृष्टि का वर्णन मनुस्मृति में पाया जाता है वह भी लगभग इसी के समान हैं, जैसे पहले यह जगत् अन्धकार रूप था। यह तर्क-विचार से अतीत और पूरी तरह से प्रसुप्त-सा अज्ञेय था । तब अव्यक्त रहे हुए भगवान स्वयंभू पाँच महाभूतों को प्रकट करते हुए स्वयं प्रकट हुए। उसने ध्यान करके अपने शरीर से अनेक प्रकार के जीवों को बनाने की इच्छा से सर्वप्रथम जल का निर्माण किया और उसमें बीज डाल दिया। वह बीज सूर्य के समान प्रभा वाला स्वर्णमय अण्डा बन गया। उससे सर्वलोक के पितामह ब्रह्मा स्वयं प्रकट हुए। एक वर्ष तक उस अण्डे में रहकर उस भगवान ने स्वयं ही अपने ध्यान से उस अण्डे के दो टुकड़े कर दिये। उन दो टुकड़ों से उसने स्वर्ग और पृथ्वी का निर्माण किया । मध्यभाग से आकाश, आठ दिशाओं और जल का शाश्वत स्थान निर्मित किया । इस क्रम के अनुसार पहले भगवान स्वयंभू प्रकट हुए और जगत् बनाने की इच्छा से अपने शरीर से जल उत्पन्न किया । फिर उसमें बीज डालने से वह अण्डाकार हो गया। ब्रह्मा या नारायण ने अण्डे में प्रकट होकर उसे फोड़ दिया, जिससे समस्त संसार प्रकट हुआ। (चित्र पृष्ठ 82 के सामने देखें) इन सब मान्यताओं को यहाँ मृषावाद में कहा गया है। Elaboration-About the origin of the world, since ancient times, there have been different beliefs. Some of those beliefs have been narrated here. Further it has been clarified that there is no truth in these beliefs. Persons who lack real knowledge, say as under Some believe that the entire world has originated from an egg and Svayambhu has created it. Creation from an egg has been primarily in two forms-one is mentioned in Chhandogyopanishad ( 3 / 9 ) and the other in Manu Smriti. According to Chhandogyopanishad, before the creation of the world, it was non-substantive and invisible at the time of the holocast. Later it proceeded to have a substantive name. Later it became somewhat gross श्रु. १, द्वितीय अध्ययन : मृषावाद आश्रव फ्र Jain Education International ( 91 ) Sh. 1, Second Chapter: Falsehood Aasrava For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002907
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages576
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_prashnavyakaran
File Size19 MB
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